
तिरंगा अभियान
तिरंगा अभियान एक जनजागरण अभियान है। इसके दल में पुलिस, पत्रकार, शिक्षक व विद्यार्थियों का समूह है जिसमें सभी अपनी सुविधा अनुसार कार्यक्रम में भाग लेते हैं। हमने एक शोध व आलेख “राष्ट्रध्वज की कहानी” की सामग्री को सौजन्य से छपवाते रहे हैं, कारण हम अपना 1 घंटे का पीपीटी प्रदर्शन निशुल्क करते हैं और इंदौर शहर के बाहर कोई आमंत्रित करता है तो हम दल के साथियों का आने जाने व वहां ठहराने की जिम्मेदारी उस संस्था को देते हैं।
हमारे कार्यक्रम की एक और विशेषता है हम या हमारा दल आयोजक से स्वागत व आभार नहीं कराते।
जिस दिन जहां प्रोग्राम होता है उस आयोजन में मुख्य या विशेष अतिथि नहीं अपितु मुख्य दर्शक या विशेष दर्शक होता और मंच के सामने बैठ कर पीपीटी का आनंद लेता है । उस दिन मंच पर तिरंगा ही सर्वोपरि होता है।
जिस दिन जहां प्रोग्राम होता है उस आयोजन में मुख्य या विशेष अतिथि नहीं अपितु मुख्य दर्शक या विशेष दर्शक होता और मंच के सामने बैठ कर पीपीटी का आनंद लेता है । उस दिन मंच पर तिरंगा ही सर्वोपरि होता है।
यह कार्यक्रम तिरंगा की जानकारी से भरपूर तो रहता ही है साथ ही देशभक्ति की भावना सतत प्रवाहित करता हैI मनोरंजक इतना कि दर्शक/श्रोता मंत्रमुग्ध होकर अब क्या, अब क्या में खो जाता हैI जब अंत में जन गण मन की घोषणा होती है, तब वह मानो नींद से जागता है। यह स्व-तारीफ नहीं लगातार दर्शकों की प्रतिक्रिया से जाना है।
मुझे याद है और आपको भी याद होगा कि 15 अगस्त, 26 जनवरी या 2 अक्टूबर को हमें स्कूल में बुलाकर लाईन में बैठा दिया जाता थाI एक बुजुर्ग नेताजी सफेद धोती कुर्त्ता व टोपी लगाये, ध्वजारोहण करते फिर बड़े गंभीर होकर स्वतंत्रता संग्राम की बातें बताते इस पर्व का महत्व बताते लेकिन राष्ट्रध्वज क्यों फहराया यह न वो बताते न हमारे गुरु जनों ने कभी बताया। मजेदार बात यह कि आज भी सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में नहीं बताया जा रहा है कि राष्ट्रध्वज का महत्व क्या है? इसके प्रति श्रद्धा भाव क्यों होना चाहिए? इस ध्वज के लिए हमें अपने प्राणों को न्यौछावर करने को क्यों तैयार रहना चाहिए? नहीं बताया कि यह हमारी आन बान शान का प्रतीक है, हमारी पहचान है।
चूंकि मैं भी अनभिज्ञ रहा 20 साल पुलिस महकमे में रहने के बाद भी अपने राष्ट्रध्वज तिरंगा के बारे मे विस्तृत जानकारी नहीं थी, जितनी उद्योगपति नवीन जिंदल को थीI
सन्दर्भ यह है कि वर्ष 1994 में तत्कालीन सांसद मान. सुमित्रा महाजन जी ने एक संस्था ‘समसामयिक अध्ययन केंद्र’, की स्थापना करवाई थी, जिसमे प्रारंभिक तौर पर अरविन्द चवलेकर, उमेश पाण्डेय, मैं स्वयं सहित दो अन्य सदस्य भी उपस्थित थेI
इस संस्था के अंतर्गत 24 दिसंबर 1996 को ‘मध्यभारत हिंदी साहित्य समीति’, इंदौर में नवीन जिंदल के कार्यक्रम का संचालन का दायित्व निभाया तब मुझे यह अपराध बोध हुआ कि मैं एक पुलिस जैसी संस्था में 20 साल से पदस्थ होने के बाद भी राष्ट्रध्वज के बारे में मुझे सिर्फ इतनी ही जानकारी है कि इसमें तीन रंग और चक्र है, और यही जानकारी आम जनता को भी हैI
तब मैंने निर्णय लिया कि राष्ट्र ध्वज के बारे में विस्तृत जानकारी आने वाली पीढ़ी को देने का काम करूँगाI राष्ट्रध्वज तिरंगे से सम्बंधित, इसका इतिहास, कैसे फहराते हैं, कैसे नष्टीकरण करते हैं, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान की जानकारी इकट्ठी की, कई स्थानों की यात्राएं की, व जानकारी की पुष्टि भी कीI
इतना सब एकत्रीकरण करने के बाद 24 दिसंबर 1996 से तैयारी में व्यस्त हुआ, जिसमे दैनिक भाष्कर के कार्टूनिष्ट इस्माइल लहरी जी से चर्चा कर फाइन आर्ट कॉलेज के विद्यार्थियों को इकठ्ठा कर थाना मल्हारगंज के ऊपर शासकीय निवास पर वर्कशॉप आयोजित की, जिसमे मैंने अपनी बातें ध्वज के सम्बन्ध में इस्माइल लहरी जी को बताई, उन्हौंने फुल साइज़ की ड्राइंग शीट पर झंडों की आउटलाइन बनाई और फाइन आर्ट कॉलेज के विद्यार्थियों से रंग भरवाने का कार्य करीब 4 महीने चलाI
इस तरह राष्ट्र ध्वज तिरंगे के जो चित्र PPT में देख रहे हैं, उसके दो सेट बनवाए, एक सेट को प्लास्टिक फोल्डर में डालकर स्पाइरल फाइल बनाकर तैयार किया और विभिन्न स्कूलों में राष्ट्र ध्वज की गाथा सुनाने और दिखाने का अभ्यास शुरू कियाI
प्रथम कार्यक्रम इंदौर के सैंट राफेल स्कूल में इंदौर की विभिन्न संस्थाओं की उपस्थिति में पहला प्रस्तुतीकरण दियाI बेकड्राप में केशरिया सफ़ेद और हरे रंग के विशाल ध्वज जिसमे चक्र नहीं था, जो हमारे साथी श्री उमेश पारीख ने उपलब्ध करवायाI इसमें नगर की मीडिया भी उपस्थित थी और इस तरह से ‘तिरंगा अभियान’ दल ने भावी पीढ़ी को राष्ट्र ध्वज के इतिहास विभिन्न अवसरों पर फहराने और उतारने की चित्रमयी जानकारी, राष्ट्र चिन्ह, राष्ट्र गीत एवं राष्ट्र गान की जानकारी दीI
चूँकि उस समय मल्टीमीडिया (PPT) की जानकारी नहीं थी तब तत्कालीन ASI महमूद भारती उस फोल्डर को एक एक घंटे तक पकड़ कर खड़े रहते थे, मैं और मेरे साथी MR की तरह पोस्टर पलट पलट कर ध्वज गाथा सुनाते थेI
वर्ष 2002 में SGSTIS इंजिनीयरिंग कॉलेज इंदौर ने एक पर्सनल कंप्यूटर, जो दृष्टीबाधित बच्चों की कैसेट रिकॉर्डिंग के लिए प्रदाय किया था, उस पर इंजिनियर श्री आनंद परांजपे ने PPT बनाई, मुझे भी सिखाईI इस तरह तिरंगा अभियान ने एडवांस तकनीक में कदम रखा और वर्तमान में पीपीटी से ही प्रस्तुतिकरण किया जा रहा है, जिससे ऐतिहासिक चित्र, ऑडियो वीडियो भी शामिल हो गएI इस प्रकार प्रस्तुति काफी प्रभावी और आकर्षक हो गईI
तिरंगा अभियान की मुख्य उपलब्धियां
- राष्ट्रध्वज तिरंगे के 1906 कोलकाता ध्वज और मैडम के 1907 के ध्वज के बारे में जो साहित्य उपलब्ध हुआ उसके अनुसार 1906 व 1907 के झंडे में जो रंगों का क्रम था वह हरा पीला और लाल था। हरे रंग पर कोलकाता ध्वज में 8 अधखिले कमल के फूल थे और मैडम कामा के ध्वज में 8 खिले हुए कमल के फूल थे। इसी तरह पीले रंग की पट्टी पर कलकत्ता ध्वज में वंदेमातरम् नीले रंग से लिखा था और मैडम कामा के ध्वज में पीले रंग पर सफेद रंग से वंदेमातरं अंकित था।
इस तरह से यह मुझे साहित्य मिला मगर भारतीय सूचना प्रकाशन विभाग का जो एक पोस्टर मिला उसमें जो 1906 और 1907 के झंडों का जो चित्र था उसमें कलर ऑर्डर बिल्कुल उल्टा यानि लाल पीला और हरा और लाल रंग की सबसे उपर पट्टी पर कुछ बटन जैसे चित्र बना दिए गए थे और पीले रंग की पट्टी पर दोनों ध्वजों में नीले रंग से वंदेमातरम् अंकित था जिसने मुझे भ्रम की स्थिति में डाल दिया कि मैं सच किसे मानूं तब खोजबीन करने पर साहित्य पढ़ने पर पता चला कि मैडम भीखा जी का ओरिजनल ध्वज जिसको लेकर वे जर्मनी में पूरे देश में घूमी वह ओरिजनल फ्लैग गुजरात के समाज सेवी याग्निक भाई जो थे वह ले आए थे और वह ऐतिहासिक ध्वज पुणे के तिलकवाड़ा में सुरक्षित है।
मैं वहां जब गया देखा तो चांदी के फ्रेम में मैडम भीखाजी कामा का ओरिजिनल फ्लैग था। वहां पर मैडम भीखाजी कामा के कलर फोटो और एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो था जिसमें वह अपना झंडा लिए हुए थे उसमें भी कलर ऑर्डर था हरा पीला और लाल और खिले कमल दिख रहे थे। वह फोटो मैंने ली है तब कंफर्म हुआ की सूचना प्रशासन विभाग के पोस्टर में गलत जानकारी दी गई है। इस तरह से इस सत्य को मैंने उजागर किया।
- फ्लैग कोड इंडिया में जो 9 साइज के झंडे दिखाए गए हैं जो मानक ध्वज कहलाते हैं। सबसे बड़ा ध्वज है वह 21X14 फीट का जो एक छोटे-मोटे प्लांट की साइज का होता है। फ्लैग कोड इंडिया में यह ध्वज अंकित है मगर 2010 तक यह फ्लैग फहराया कहीं नहीं गया क्योंकि उतने ऊंचे ध्वजदंड दंड भारत में कहीं नहीं थे मगर 2010 तक हाईमास्ट चलन में आ गये थे। 2010 में हमने इंदौर में गांधी प्रतिमा पर 21X14 फीट का ध्वज तिरंगा अभियान और अपना समूह के सामुहिक प्रयास से फहराया,यह एक इतिहास रचा गयाहै। इस तरह से हमारा सपना साकार हुआ। 26 जनवरी के प्रोग्राम के पहले कलेक्ट्रेट में जो मीटिंग होती है उसमें कलेक्टर से श्री राकेश श्रीवास्तव मैंने अपने इस विचार व सपने को जाहिर किया उन्होंने इसे स्वीकार किया प्रशासकीय और नगर पालिका का सहयोग मुझे मिला और मुझे भूमि उपलब्ध करा दी रीगल स्क्वायर पर जो गांधी प्रतिमा है वहां पर वह जगह दिला दी और इस तरह से हमने इस बड़े ध्वज को वहां पर लगाने का इतिहास रचा है। इस ध्वज को उस समय के वित्त मंत्री राघव जी ने 26 जनवरी को फहराया था।
- राष्ट्रध्वज का अवतरण दिवस (जन्मदिन) यानी कि हमने इसे संविधान सभा में 22 जुलाई 1947 को आजाद भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में अंगीकार किया था। इस प्रकार यह दिन राष्ट्रध्वज तिरंगे का जन्मदिन हुआ।मैंने 2002 में प्रयास करके इंदौर की दो स्कूलों एमराल्ड हाइट्स और विद्यासागर स्कूल यहां के प्रिंसिपल व मालिक मेरे मित्र थे विशेष आग्रह करके 22 जुलाई को राष्ट्रध तिरंगा का जन्मदिन मनाने का आग्रह किया, मीडिया ने ध्यान दिया और इस तरह से पूरे भारत में अब लोग राष्ट्रध्वज तिरंगा का जन्मदिन मनाने लगे। तिरंगा का जन्मदिन मनाने के लिए आरती उतारें, केक काटे,वाहनों पर तिरंगा लगा कर रैली निकालें,एक दूसरे को बधाई कार्ड भेजें स्वतंत्रता दी गई,इस तरह शुरुआत हो गई है। इसे और भी वृही स्तर पर फैलने की जरूरत है।
- द्वितीय विश्व युद्ध 1943 के दौरान भारत का पहला भूखंड अंडमान निकोबार दीप समूह अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था। सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज और जापान की फौज ने मिलकर आज़ाद कराया था। अंडमान निकोबार द्वीप को जापान ने सुभाषचंद्र बोस को सौंप दिया वहां पर उन्होंने गांधी का चरखा ध्वज फहराया और अपने आजाद हिंद फौज से सलामी ली। अंडमान निकोबार दीप का नामकरण किया शाहीद और स्वराज द्वीप।
2018 के पहले तक इन द्वीपों का नाम अंडमान निकोबार था। मैं जिन स्कूलों में कार्यक्रम देने जाता था ,तो स्कूली बच्चों से इस संबंध में प्रधानमंत्री महोदय को पोस्टकार्ड लिखवाना शुरू किया कि इन द्वीपों को सुभाषचंद्र बोस द्वारा दिए नामों से पुकारा जाये। स्कूलों के लाखों बच्चों ने, कॉलेजों के विद्यार्थियों ने व एनसीसी के छात्र-छात्राओं ने करीब एक लाख पोस्टकार्ड लिखे परिणाम स्वरूप 30 दिसंबर 1918 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अंडमान निकोबार में जाकर सुभाषचंद्र बोस के द्वारा दिए हुए नाम का विधिवत लोकार्पण किया प्रकाशित किया गजट नोटिफिकेशन हुआ और साथ में अन्य दीपों का उन्होंने नाम किया तिरंगा अभियान और स्कूली बच्चों की यह पहली सफलता थी।
तिरंगा अभियान की मुख्य उपलब्धियां
iamtechguru@gmail.com2024-12-09T09:08:26+00:00Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Curabitur lectus lacus, rutrum sit amet placerat et, bibendum nec mauris....