हमारा उद्देश्य

तिरंगा अभियान से आम लोगों को जागरूक करना

हमारा सपना

संपूर्ण राष्ट्र को राष्ट्र ध्वज की विस्तृत जानकारी देना

हमारा लक्ष्य

लोग राष्ट्र ध्वज का ससम्मान ध्वजारोहण करें और कराएं

गणतंत्र के सदस्य कैसे हों?

"गणतंत्र के सदस्य कैसे हों? "

1.  जन्मजात लोकतंत्रवादी वह होता है जो जन्म से ही अनुशासन का पालन करने वाला हो। लोकतंत्र स्वाभाविक रूप में उसी को प्राप्त होता है,जो साधारण रूप में अपने को मानवीय तथा दैवीय सभी नियमों का स्वेच्छा पूर्वक पालन करने का अभ्यस्त बना लें। जो लोग लोकतंत्र के इच्छुक हैं उन्हें चाहिए कि पहले वे लोकतंत्र की इस कसौटी पर अपने को परख लें। इसके अलावा लोकतंत्रवादी को नि:स्वार्थ भी होना चाहिए। उसे अपनी या अपने दल की दृष्टि से नहीं बल्कि एकमात्र लोकतंत्र की ही दृष्टि से सब कुछ सोचना चाहिए

2. गणतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शक्ति जनता के हाथ में होती है और वह अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन चलाती है। गणतंत्र का सदस्य बनने का तात्पर्य है उस राष्ट्र का सक्रिय और जिम्मेदार नागरिक बनना, जो गणतांत्रिक प्रणाली में अपना योगदान देता है।

3. गणतंत्र के सदस्य बनने का अर्थ है किसी ऐसे देश का नागरिक होना, जहां जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि संविधान के अनुरूप शासन करते हैं। इसमें सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए नागरिक को अपने संवैधानिक अधिकारों और कर्त्तव्यों का पालन करना आवश्यक है।

 

राष्ट्रध्वज के प्रति निष्ठा की शपथ 

 " मैं राष्ट्रीय झंडे और लोकतंत्रात्मक, संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष गणराज्य के प्रति निष्ठा की शपथ लेत/लेती हूं, जिसका यह झंडा प्रतीक है। "

राष्ट्रध्वज पर प्रमुख हस्तियों के विचार

" सभी राष्ट्रों के लिए एक ध्वज होना अनिवार्य है। लाखों लोगों ने इस पर अपनी जान निछावर की है। यह एक प्रकार की पूजा है। इसे नष्ट करना पाप होगा। ध्वज एक आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे लिए यह अनिवार्य होगा कि हम भारतीय जिनके लिए भारत एक घर है, एक ही ध्वज को मान्यता दें और इसके लिए मर मिटें।"
- मोहनदास करमचंद गांधी

"मुझे याद है मेरी तरह इस सदन (सविधान सभा ) के सदस्यों को भी याद होगा कि इस झंडे को देखकर हमारी नसें फड़क उठती थीं और जब हम कभी थकने लगते थे, हमारी हिम्मत पस्त होने लगती थी, तो यह झंडा हमें बराबर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता था। हम अपनी आखिर सांस तक इस झंडे को थामे रहें और जब गिरने लगें, जाने लगें, हमारे पास से दूसरे को सौंप जाएं, ताकि यह हमेशा ऊंचा बना रहे।"    
- पं. जवाहर लाल नेहरू

" हम रहें ना रहें,लेकिन यह झंडा रहना चाहिए और देश रहना चाहिए। इसका मुझे विश्वास है कि यह झंडा रहेगा, हम और आप रहे या ना रहें, लेकिन भारत का सिर ऊँचा होगा। भारत दुनिया के देशों में एक बड़ा देश होगा और शायद भारत दुनिया को कुछ दे सके।" 
- लाल बहादुर शास्त्री

" राष्ट्रध्वज में केसरिया रंग त्याग और बलिदान का, सफेद रंग सत्य और पवित्रता का तथा हरा रंग हमारी शस्यश्यामला धरती (समृद्धि) का द्योतक है। 24 आरियों वाला नीले रंग का अशोक चक्र जो विधि (धम्म) चक्र कहलाता है, जीवन को गति देने वाला, शांतिपूर्ण परिवर्तन का द्योतक है।"
- डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

 " कि वह क्या था,

 जिसे हाथों में थामे,

हजारों लोग शहीद हो गए,

क्या था वह जिसे चूम, लोग हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए,

 वह क्या था जो सिर्फ आज़ादी का नहीं,

 हमारी जिंदगी के मूल्यों का प्रतीक बना,

 हमारा तिरंगा
"हमारे भारतीय होने का एकमात्र चिन्ह!"

भारत का संविधान-उद्देशिका

" हम भारत के लोग,

भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न,

समाजवादी, पंथनिरपेक्ष,

लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए,

तथा उसके समस्त नागरिकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। "

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लाल किले पर 30 मिनट-मुनिश्री तरुण सागर जी

मां भारती का सम्मान होना चाहिए।

नित्य वंदे मातरम् का गान होना चाहिए ।।

रच रहे षड्यंत्र नेता संस्कृति अपमान का।

ऐसे नेताओं पर भी अब ध्यान होना चाहिए।।

कब तलक बैठे रहेंगे हाथ पर हम हाथ धरे।

हो किसी भी मंच से अभियान होना चाहिए।।

अनसुना जिसने किया बद्दुआ से वह मिट गया।

आग से पहले धुएं का ज्ञान होना चाहिए।।

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संविधान के अंतर्गत हमारे कर्त्तव्य - 51क 

हमें हमारे अधिकारों के साथ-साथ कुछ कर्तव्य भी दिए गए हैं जो संविधान के चौथे हिस्से में 42 वां संशोधन (संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 11 द्वारा स्थापित) कर जोड़े गए हैं, जिनमें पहला कर्तव्य है,          

" क.- संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं,राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्र चिन्ह का आदर करें व करायें "                     

आपको बताऊं उक्त कर्तव्यों के कारण ही में पुलिस सेवा में रहते हुए तिरंगा अभियान कार्य को कर पाया। सिविल सेवा आचरण अधिनियम से बंधा रहने से मुझे पहले भय लगा रहता था की नौकरी में रहते में जो तिरंगा जन जागरण अभियान चला रहा हूं उससे विभागीय कार्रवाई मुझ पर ना हो जाए। मुझे इस भय से मुक्त कराया पूर्व महाधिवक्ता मध्यप्रदेश शासन श्री आनंद मोहन माथुर और आईजी स्वराज पुरी जी ने।

तो इन कर्तव्यों के कारण ही में इसे अब भी चल रहा हूं आपका भी कर्तव्य है कि आप भी इनका पालन करें व पालन करायें और प्रचार प्रसार भी करें।

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ध्वज वंदना

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

यह आपने और मैंने अपने बचपन से लेकर आज भी गा रहे हैं। यह प्यारा गीत हमारे बच्चे और उनके बच्चे भी गा रहे हैं। आने वाली पीढ़ी भी गायेगी।

इस अजर अमर कालजयी गीत के रचितियता थे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.श्री श्याम लाल जी पार्षद   " गुप्त " जो कानपुर जिला के नरवल ग्राम में 9 सितंबर 1896 में जन्मे थे।श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के निर्देश पर एक रात 3-4 मार्च 1924 एक रात्रि में ही श्याम लाल जी पार्षद उर्फ गुप्त ने यह गीत लिखा और 13 अप्रैल 1924 को " जलियांवाला बाग दिवस पर कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन में फूल बाग मैदान में सार्वजनिक रूप से झंडा गीत का सर्व प्रथम सामूहिक रूप में गाया गया। पं. जवाहरलाल नेहरू जी ने इसे बहुत सराहा। उन्होंने कहा था     " भले ही लोग पार्षद जी को नहीं जानते होंगे परन्तु समूचा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से परिचित हैं।"

सन् 1938 में हरिपुरी के ऐतिहासिक कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने ध्वजारोहण किया तिरंगा के सम्मान में लगभग 500 लोग श्रद्धा विभोर होकर " झंडा गीत " " विजयी विश्व तिरंगा प्यारा.." समवेत स्वर म़े गा उठे। यह प्रथम अधिवेशन के बाद देश की गली गली कोने कोने मैं प्रभात फेरियों में जन जन के कंठों में यह गीत गूंजने लगा।

स्वतंत्र भारत ने उन्हें सम्मान दिया और 1952 में लाल किला से उन्होंने अपना प्रसिद्ध " झंडा गीत " गाया।1972 में लाल किला पर उनका अभिनंदन किया गया। 1973 में उन्हें " पदमश्री से अलंकृत किया गया।

पदमश्री श्यामलाल जी पार्षद उर्फ गुप्त जी का देहांत 10 अगस्त 1977 को कानपुर में हुआ। तो यह अजर अमर गीत बना विश्व विजय तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा......

झंडा ऊंचा रहे हमारा

 रचयिता पदम श्री श्याम लाल जी पार्षद उर्फ गुप्त

 झंडा ऊंचा रहे हमारा,

 विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा

 विजयी विश्वा तिरंगा प्यारा

सदा शक्ति बरसाने वाला

 प्रेम सुधा सरसने वाला

वीरों को हरसाना वाला

मातृभूमि का तन मन सारा

 विजय विश्व तिरंगा प्यारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा

आओ प्यार वीरा आओ

 देश धर्म पर बलि बलि जाओ

 एक साथ सब मिलकर गाओ

 प्यारा भारत देश हमारा

विजयी विश्वा तिरंगा प्यारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा

शान ना इसकी जाने पाये

चाहे जान भले ही जाए

विश्व विजय करके दिखालायें

तब हो प्रण पूर्ण हमारा

 विजयी विश्वा तिरंगा प्यारा

झंडा ऊंचा रहे हमारा

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा

भारत माता कौन है??

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