Rashtriy Chinh

भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह को महान राजा अशोक की राजधानी सारनाथ से प्राप्त शिला पर अंकित चिन्ह से लिया गया है। इस प्रतीक को 26 जनवरी 1950 के दिन जब भारत गणतंत्र बना था, अपनाया था।

 

सारनाथ राजधानी के वास्तविक रूप में चार शेर चिन्ह के रूप में दिखाई पड़ते हैं जो एक दूसरे से पीठ लगाए हुए हैं। यह शिला आज भी सारनाथ म्यूजियम में सुरक्षित है यह एक फलक यानी शिला पर निर्मित किए गए हैं जिसमें आराम की मुद्रा में हाथी, तेजी से बढ़ने की मुद्रा में घोड़ा, एक बैल और एक शेर बने हुए हैं जिन्हें एक घंटी के रूप में कमल के ऊपर चक्र से विलग किया गया है। यह चमकीला शीला पर निर्मित है जो धर्म चक्र से सुशोभित है। राष्ट्रचिन्ह में सामने से देखने पर तीन ही शेर दिखाई पड़ते हैं, चौथा शेर के दृश्य के अंतर्गत नहीं आता। चक्र फलक की केंद्र में है बैल दाहिनी तरफ और घोड़ा दौड़ता हुआ बाई तरफ है। सत्यमेव जयते श्लोक नीचे अंकित है जो मुंडा उपनिषद से लिया गया है। दौड़ता हुआ घोड़ा गति व प्रवाह का और बैल श्रम व शक्ति का प्रतीक बना हुआ है।

झंडा आंदोलन 1923 जबलपुर

राष्ट्रीय झंडे के इतिहास में सन् 1923 अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष रहा। नागरिक अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए हकीम अज़मल खान की अध्यक्षता में अवज्ञा जांच समिति नियुक्त की गई थी हकीम अज़मल खान के अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सी. राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज, सेठ छोटानी एवं डॉक्टर एम. . अंसारी इस समिति के सदस्य थे। इस समिति ने पूरे देश का दौरा किया था।

यह दल 10 जुलाई 1922 को जब जबलपुर पहुंचा तब उनका नागरिक अभिनंदन किया गया एवं टाउन हॉल पर स्वराज ध्वज (चरखा ध्वज) फहराया गया था। सार्वजनिक स्थान पर झंडा रोहण एवं नागरिक अभिनंदन किया जाने से इंग्लैंड में खलबली मच गई। कर्नल येट ने हाउस ऑफ कॉमंस में यह मामला उठाया और पूछा जबलपुर नगर पालिका ने क्रांतिकारी झंडा है वहां कैसे लग गया? तब ब्रिटिश भारत सरकार ने इसकी पुनरावृत्ति न होने का आश्वासन दिया।

राजा जी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, सेठ जमनालाल बजाज आदि का एक शिष्ट मंडल जो को 11 मार्च 1923 को जबलपुर आना था। जबलपुर नगर पालिका के सदस्यों ने डिप्टी कमिश्नर से शिष्ट मंडल के सम्मान में नगर पालिका भवन पर (जो विक्टोरिया हॉस्पिटल के बाजू में है) स्वराज झंडा फहराने की अनुमति मांगी जो नहीं दी गई। तब यह तो प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। परिणामत: सारे देश में एक तूफान खड़ा हो गया।

जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर ने नागरिक समारोह रोकने के लिए 11 मार्च 1923 को टाउन हॉल (नगर पालिका भवन) पर डेरा डाल दिया। कांग्रेस ने तिलक भूमि में स्वागत समारोह का आयोजन कर लिया। राजा जी और डॉक्ट राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रीय झंडे की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए लोगों का आवाहन किया।

सेंट्रल प्रोविजंस कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पंडित सुंदरलाल ने शिष्ट मंडल को आस्वस्त किया कि,” सेंट्रल प्रोविजंस की जनता राष्ट्रीय झंडे की प्रतिष्ठा के लिए हर प्रकार के त्याग के लिए तैयार रहेगी। उन्होंने घोषणा की कि, “2000 सत्याग्रही की भारती, रुपए 5000 का एकत्रीकरण एवं जब तक 500 चरखे चलाना शुरु नहीं होते तब तक में उपवास रखेंगे।

स्थानीय कांग्रेसी/जबलपुर के नागरिक तत्काल उनके प्रतिज्ञा पूरी करने का प्रबंध करने लगे। पूरे जबलपुर में खलबली मच गई इस प्रकार जबलपुर से झंडा सत्याग्रहकी शुरुआत हो गई। भारतियों को झंडे की शक्ति का एहसास हो गया। रोचक घटनाक्रम

18 मार्च 1922 को गांधी जी को यंग इंडियापत्रिका में राजद्रोहात्मक (अंग्रेजों की नजर में) लेखन के फलस्वरुप 6 वर्ष कारावास की सजा दी गई। उसके 1 वर्ष पूर्ण होने पर 18 मार्च 1923 को जबलपुर वासियों ने तिलक भूमि से ओमती पुल के रास्ते सिविल लाइन तक एक बड़ा जुलूस निकाला। जुलूस को ओमती पुल क्लॉक टावर पर सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट ने रोक लिया और कुछ शर्तों पर अनुमति देने को तत्पर था।

पंडित सुंदरलाल जैन ने कहा जुलूस में 10 लोग रहेंगे, दसों व्यक्ति मुंह पर कपड़ा बांध लेंगे लेकिन तिरंगा अवश्य रहेगा। अंत में उन्होंने कहा भले ही एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा बांधकर जाए पर उसके साथ तिरंगा तो रहेगा।

जब पंडित सुंदरलाल जैन और सहायक पुलिस सुपरिंटेंडेंट के मध्य वार्तालाप चल रहा था तभी उस्ताद प्रेमचंद अपने तीन साथियों सीताराम जाधव, परमानंद जैन और खुशाल चंद्र जैन के साथ पुलिस की घेराबंदी तोड़कर टाऊनहाल पहुंचे जो विक्टोरिया स्थल के प्रांगण में था और टाउन हॉल के ऊपरी गुम्बद पर स्वराज ध्वज फहरा दिया। चारों को गिरफ्तार कर झंडा जप्त कर लिया गया।

उधर जब पंडित सुंदरलाल जैन को सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट में अनुमति नहीं दी तो उन्होंने कहा कि, ” मैं अपने विवेकानुसार तथा राष्ट्रीय झंडे के सम्मान के अनुरूप कोई भी कार्य करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखता हूं जैसा कि मैं उनको(ASP) बता दिया है, यह राष्ट्रीय झंडा विद्रोह का नहीं शांति और प्रेम का झंडा है।

इस प्रकार झंडा आंदोलन जबलपुर से प्रारंभ हुआ जो बाद में पंडित सुंदरलाल जैन को 6 माह की कैद होने से उन्होंने अपना उत्तराधिकारी महात्मा भगवानदीन को नामित कर दिया। मार्गदर्शक भगवानदीन ने आंदोलन जबलपुर से नागपुर स्थानांतरित कर दिया।

Tricolour hoisted by Nehru at Red Fort in 1947 to get fresh lease of life

Updated: 21st Feb, 2022 at 10:13 AM

The historic tricolour had been kept at Army Battle Honours Mess (ABHM) in Chanakyapuri. The flag framed in a box covered with glass was handed over to the lab on Thursday. – Parvez Sultan

NEW DELHI: The Conservation Laboratory of the National Museum, which has helped in conservation of precious cultural heritages like paintings on the ceilings of Rashtrapati Bhawan, has another momentous task at hand — restoration and preservation of the National Flag hoisted from the ramparts of Red Fort on August 16, 1947.

The historic tricolour had been kept at Army Battle Honours Mess (ABHM) in Chanakyapuri. The flag framed in a box covered with glass was handed over to the lab on Thursday. According to people privy to the matter, preliminary assessment suggests the flag is in good condition but requires antifungal and anti-insect treatment to enhance its lifespan.

“The flag was with a battalion however it had remained untraceable for about 45 years. We don’t have much information about the transfer of this national treasure (flag) to the Army. The authorities had been looking for an appropriate agency for its restoration for a long time. After a retired military officer suggested, they approached the National Museum to take up the task,” said an official.

Lt Cdr KV Singh in his book ‘The Indian Tricolour’ has also mentioned that the flag unfurled by Nehru at Red Fort was shifted to the ABHM. The tricolour in possession of the Archaeological Survey of India at Fort St George Museum in Chennai is known as the oldest surviving Indian national flag. It was hoisted at Fort St George in Chennai on August 15, 1947.

The tricolour was visited at 8 30 am at the Red Fort and the battalion 7 Sikh Light Infantry was incharged for the ceremony.

The officials said after the event, the flag was given to the battalion however it had remained untraceable for about 45 years.

“Presumably, it must have been in the custody of the former Delhi and Rajasthan Sub-Area Mess all these past years,” read the book.

Lt Cdr Singh wrote in the book that when the issue was highlighted in 2002, it was discovered in the Officer’s Mess headquarters Delhi Area in Delhi Cantonment.

Then the flag changed hands and finally reached the ABHM.

The flag being mended by the National Museum laboratory is made from cotton and its dimension is 12 feet by 8 feet. “It seems that the blue chakra in the middle is hand-painted. Textile division will check for any damages to the fabric after which we give it antifungal and anti-insect treatment. Its restoration assumes significance as the country is celebrating 75 years of independence,” said the official.

1947 में लाल किले पर नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा नए जीवन के लिए होगा संरक्षित

अपडेट: 21 फरवरी, 2022, सुबह 10:13 बजे

ऐतिहासिक तिरंगा चाणक्यपुरी स्थित आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में रखा गया था। यह झंडा एक कांच से ढके बॉक्स में फ्रेम किया हुआ था, जिसे गुरुवार को प्रयोगशाला को सौंप दिया गया। परवेज सुल्तान

नई दिल्ली: नेशनल म्यूजियम की कंजर्वेशन लैबोरेटरी, जिसने राष्ट्रपति भवन की छत पर बनी पेंटिंग्स जैसे अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण में मदद की है, अब एक और ऐतिहासिक कार्य कर रही है — 16 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से फहराए गए राष्ट्रीय ध्वज के संरक्षण और पुनर्स्थापन का काम।

यह ऐतिहासिक तिरंगा पहले चाणक्यपुरी स्थित आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में रखा गया था। यह झंडा एक कांच से ढके बॉक्स में फ्रेम किया हुआ था, जिसे गुरुवार को लैब को सौंपा गया। मामले से परिचित लोगों के अनुसार, प्रारंभिक जांच में पता चला है कि झंडा अच्छी स्थिति में है, लेकिन इसकी आयु बढ़ाने के लिए इसे एंटीफंगल और एंटीइंसेक्ट उपचार की आवश्यकता है।

एक अधिकारी ने बताया, “यह झंडा एक बटालियन के पास था, लेकिन लगभग 45 वर्षों तक इसका कोई पता नहीं चला। हमें इस राष्ट्रीय धरोहर (झंडे) के सेना तक पहुंचने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। लंबे समय से इसके संरक्षण के लिए उपयुक्त एजेंसी की तलाश हो रही थी। एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी की सिफारिश पर नेशनल म्यूजियम से संपर्क किया गया और यह काम सौंपा गया।

लेफ्टिनेंट कमांडर केवी सिंह ने अपनी पुस्तक ‘द इंडियन ट्राइकलर’ में भी उल्लेख किया है कि नेहरू द्वारा लाल किले पर फहराया गया झंडा बाद में ABHM में स्थानांतरित कर दिया गया था। फोर्ट सेंट जॉर्ज म्यूजियम, चेन्नई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पास जो तिरंगा है, उसे अब तक का सबसे पुराना भारतीय राष्ट्रीय ध्वज माना जाता है। इसे 15 अगस्त 1947 को चेन्नई के फोर्ट सेंट जॉर्ज में फहराया गया था।

तिरंगा सुबह 8:30 बजे लाल किले पर फहराया गया था, और इस समारोह की जिम्मेदारी 7 सिख लाइट इन्फैंट्री बटालियन को सौंपी गई थी।

अधिकारियों ने बताया कि इस कार्यक्रम के बाद झंडा बटालियन को सौंप दिया गया, लेकिन लगभग 45 वर्षों तक इसका कोई पता नहीं चला।

पुस्तक में लिखा गया है, “संभवतः यह झंडा इन सभी वर्षों के दौरान पूर्व दिल्ली और राजस्थान सबएरिया मेस की कस्टडी में रहा होगा।

लेफ्टिनेंट कमांडर सिंह ने अपनी पुस्तक में लिखा कि जब यह मामला 2002 में उजागर हुआ, तो यह झंडा दिल्ली छावनी के ऑफिसर्स मेस मुख्यालय में पाया गया।

इसके बाद यह झंडा कई स्थानों पर गया और अंततः आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में पहुंचा।

नेशनल म्यूजियम की प्रयोगशाला में संरक्षित किया जा रहा यह झंडा सूती कपड़े से बना है और इसका आकार 12 फीट गुणा 8 फीट है। एक अधिकारी ने बताया, “ऐसा लगता है कि बीच में बना नीला चक्र हाथ से पेंट किया गया है। कपड़ा विभाग झंडे की संरचना की किसी भी क्षति की जांच करेगा, इसके बाद इसे एंटीफंगल और एंटीइंसेक्ट उपचार दिया जाएगा। इसका संरक्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश 75 वर्षों की स्वतंत्रता का जश्न मना रहा है।

वर्तमान राष्ट्रध्वज तिरंगे की उत्पत्ति

( एक और लेख मिला है।)

भारतीय तिरंगे की डिजाइन का श्रेय काफी हद तक एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी पिंगले वेंकैया को दिया जाता है, जो कथित तौर पर दूसरे एंग्लोबोअर युद्ध (1899-1902) के दौरान दक्षिण भारतीय सेना के हिस्से के रूप में वहां तैनात थे।

राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन करने में वर्षों का शोध चला। 1916 में उन्होंने भारतीय झंडों के संभावित डिजाइनों वाली एक पुस्तक भी प्रकाशित की। 1921 में बेजवाड़ा(वर्तमान में विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में, वेंकैया ने फिर से गांधी से मुलाकात की और ध्वज के मूल डिजाइन का प्रस्ताव रखा जिसमें दो प्रमुख समुदायों हिंदूओं और मुसलमानों के प्रतीक के लिए दो लाल और हरे रंग का बैंड शामिल थे। गांधी जी ने यक़ीनन शांति और भारत में रहने वाले बाकी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सफेद पट्टी और देश की प्रगति का प्रतीक चरखा जोड़ने का सुझाव दिया।

एक दशक बाद तक कई बदलाव होते रहे, जब 1931 में कराची में कांग्रेस का बेटी की बैठक हुई और तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया तिरंगे को अपनाया गया। लाल को केसरिया से बदल दिया गया और रंगों का क्रम बदल दिया गया। झंडे की कोई धार्मिक व्याख्या नहीं होनी चाहिए थी। स्वतंत्र भारत के लिए एक झंडा

स्वतंत्र भारत का ध्वज बनने के लिए चरखा ध्वज तिरंगे को बदल दिया गया था। प्रस्तावित तिरंगा के शीर्ष पर केसरिया ताकत और साहसका प्रतीक है, बीच में सफेद शांति और सच्चाईका प्रतिनिधित्व करता है और नीचे हरा रंग भूमि की उर्वरता, विकास और शुभताका प्रतीक है। ध्वज पर प्रतीक के रूप में 24 तीलियों वाले अशोक चक्र ने चरखा को बदल दिया। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि,” गति में जीवन और ठहराव में मृत्यु है।इसके निर्माता के बारे में विवाद

2013 में एक विवाद तब पैदा हुआ जब इतिहासकार पांडुरंगा रेड्डी ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज हैदराबाद में जन्मे सुरैया तैयब जी द्वारा डिजायन किया गया था। संविधान सभा में बिना किसी नाम के प्रस्ताव के साथ, आरोप तर्क के लिए खुले हैं। हालांकि इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि 1947 में चरखे से अशोक चक्र में बदलाव की सिफारिश किसने की थी। 2018 में हाऊ दा तिरंगा और शेर प्रतीक वास्तव में आयाशीर्षक से एक लेख में शिल्प एनजीओ दस्तकार संस्था की संस्थापक सदस्य लैला तैयब जी ने बदलाव का सुझाव दिया था।

उद्योगपति और कांग्रेस के राजनेता नवीन जिंदल द्वारा गठित एक गैर लाभकारी संगठन, ” फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडियाकी वेबसाइट कहती है श्रीमती सुरैया बदरुद्दीन तैयबी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रध्वज के

डिजाइन को आखिरकार मंजूरी दे दी गई और 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया। वह एक प्रतिष्ठित कलाकार थी और उनके पति बीएचएफ टीबजी(आईसीएस) उस समय संविधान सभा के सचिवालय में उपसचिव थे।

वेंकैया जिनका 1963 में निधन हो गया, को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान के लिए मरणोपरांत 2009 में एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया। 2014 में उनका नाम भारत रत्न के लिए भी प्रस्तावित किया गया था।

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तिरंगा के कुछ अनूठे तथ्य  

# लाल किले पर पहली बार 16 अगस्त 1947 को झंडा फहराया गया।

# राष्ट्रीय झंडे को सलामी देने की परंपरा 15 अगस्त 1947 को शुरू हुई।

# लाल किले का असली नाम क़िलामुबारक है।

# आजादी की पहली सुबह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजाई थी।

# आजाद भारत में 14-15 अगस्त 1947 को आधी रात तिरंगा लहराया गया था।

# तब काउंसिल हाउस के ऊपर तिरंगा फहराया गया था। जिसे आज संसद भवन के रूप में जाना जाता है।

# 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस में यूनियन जैक होता लिया गया था।

# वायसराय हाउस राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना है।

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कुछ ऐसी थी दिल्ली में आजादी की पहली सुबह

” 15 अगस्त 1947 का इतिहास भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है देश में स्वतंत्रता दिवस(Independence Day) इस बार न सिर्फ और ज्यादा खास है बल्कि से लेकर देश भर में तैयारी अभी काफी खास की जा रही है। 15 अगस्त 1947 यानी जिस दिन भारत को आजादी मिली थी, इस दिन का हर भारतीय के लिए एक अलग भाव है। लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज इस दिन देश में क्या हुआ था आज आपको बताएंगेअंग्रेजों के 200 वर्षों के शासन का खात्मा और दिल्ली में लाल किले पर भारत के राष्ट्रध्वज फहराने की वह ऐतिहासिक घटना हर किसी के लिए गर्व का पल रहा है।

16 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौर गेट पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू का वह पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की आधी रात को राष्ट्रपति भवन तत्कालीन वायसराय हाउस में दिया था वह अभी भी लोगों की यादों में बसा है। पंडित नेहरू ने अपने पहले भाषण में कहा था कि,” कई वर्षों पहले देश के भाग्य को बदलने की कोशिश शुरू हुई थी और अब वक्त आ गया है कि देश अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें।पंडित नेहरू ने अपने पहले संबोधन में कहा था कि,” आज रात 12:00 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी उसे वक्त भारत एक आज़ाद जीवन के साथ नई शुरुआत कर रहा होगा।

15 अगस्त 1947 को क्या लाल किले पर समारोह हुआ? हम एक टीवी चित्र देखे हैं जिसमें यूनियन जैक को नीचे करना और जवाहरलाल नेहरू तिरंगा फराते हैं और जमा मस्जिद के सामने लाल किले में भीड़ को संबोधित करते हैंएक आदर्श राष्ट्रवादी कोलाज बनाने के लिए एक साथ रखा गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह कथा तथ्यात्मक रूप से गलत है। 15 अगस्त 1947 को लाल किले में स्वतंत्रता दिवस समारोह नहीं हुआ था और अंग्रेजों को भारत के दुश्मन के रूप में नहीं माना जाता था। लेकिन छवि का प्रतीकवाद शक्तिशाली है क्योंकि यह हमें हमारी राजनीतिक सफलता की एक साधारण याद दिलाता है। यूनियन जैक को तिरंगे से बदलने से एक मजबूत राष्ट्रवादी धरणा का पता चलता है कि भारतीयों ने वास्तव में शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को हराया था। दूसरी ओर लाल किले पर नेहरू की आकृति भारत के पुनर्खोज में भारतीय राष्ट्रवाद की विजय का प्रतीक है।

कोई ब्रिटिश विरोधी भावना नहीं

लेकिन भारत के अंतिम वायसराय लुई माउंटबेटन की रिपोर्ट और उनकी बेटी पामेला माउंटबेटन की व्यक्तिगत यादें जैसे आधिकारिक दस्तावेज हमें 15 और 16 अगस्त 1947 को हुई घटनाओं के लिए एक बहुत ही अलग दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।

लुई माउंटबेटन 14 अगस्त को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेकर कराची से वापस आए। उन्हें भारतीय नेताओं द्वारा सूचित किया गया कि वे चाहते हैं कि वह एक संक्षिप्त अवधि के लिए भारत के अंतिम गवर्नर जनरल का पद स्वीकार करें। यह प्रस्ताव औपचारिक रूप से 14 अगस्त को संविधान सभा के मध्य रात्रि सत्र के दौरान प्रस्तुत किया गया था और इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया था। इसके तुरंत बाद नेहरू ने भाग्य के साथअपना प्रसिद्ध भाषण दिया और पहली बार भारतीय राष्ट्रध्वज फहराया।

(संदर्भ माउंटबेटन पेपर्स, ब्रिटिश लाइब्रेरी,बी.एल./आई. .आर.:एल./पी../6/123)

हालांकि डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने उस दिन सबसे दिलचस्प अवलोकन किया उन्होंने कहा,” जबकि हमारी उपलब्धि हमारे अपने कष्टों और बलिदानों के कारण कम मात्रा में नहीं है, यह भी है…. ब्रिटिश जाति की ऐतिहासिक परंपराओं और लोकतांत्रिक आदर्श की समाप्ति और पूर्ति….ण हमें अपने बीच में एक के रूप में खुश है उसे जाति के प्रसिद्ध बर्मा के विस्कांडर माउंटबेटनभारत पर ब्रिटेन के प्रभुत्व की अवधि आज समाप्त हो रही है और अब ब्रिटेन के साथ हमारे संबंध समानता,पारस्परिक सदभावना और पारस्परिक लाभ के आधार पर आराम करने जा रहे हैं।अंग्रेजों के प्रति इस सकारात्मक रवैया को अंग्रेजों और भारतीय अभिजात वर्ग के बीच एक समझौते के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अंग्रेजों का एक यादगार विदाई दी जानी चाहिए। यह भारतीय नेताओं के बीच एक लोकप्रिय भावना थी। पामेला माउंटबेटन की 15 अगस्त 1947 की डायरी प्रविष्टि इस पहलू को पकड़ती है। वह लिखती है,”समारोह के बाद(विधानसभा भवन में)वे कुछ समय के लिए दरवाजों से बाहर नहीं निकल सकी क्योंकि भीड़ अभी इतनी घनी थी। उन्होंने ताली बजाई और चिल्लाईंपंड़ित माउंटबेटन की जय,

लेडी माउंटबेटन की जय

(पामेला माउंटबेटन, इंडिया रिमेम्बर्ड,लंदन:पवेलियन पृष्ठ 143)

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बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई की धुन से किया स्वागत

वहीं 15 अगस्त 1947 को आजादी की पहली सुबह की शुरुआत बिस्मिल्लाह खान शहनाई की धुन से की थी। पंडित नेहरू ने इच्छा जताई थी इस मौके पर बिस्मिल्लाह खान शहनाई वादन करें। इसके बाद आजादी की पूर्व संध्या पर ढूंढ कर बुलावा भेजा गया। जिसके बाद बिस्मिल्लाह खान और उनके साथियों ने राग काफी बजाकर आजादी की सुबह का संगीतमय स्वागत किया था। इसके बाद पंडित नेहरू ने ध्वजारोहण किया था।

देश आजादी की 75 वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है देशभर में जस्टिस की तैयारी चल रही है।

आजादी की पहली सुबह पर भी देश में भारी उत्साह का माहौल था और उसे वक्त भी हजारों की भीड़ लाल किले पर जश्न मनाने के लिए जुटी थी।

समारोह

बड़े दिन की शुरुआत वायसराय हाउस जिसे बाद में राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया, के दरबार हाल में माउंटबेटन के शपथ ग्रहण समारोह से हुई। इस संक्षिप्त आयोजन के बाद नवनियुक्त गवर्नर जनरल ने नेहरू जी व साथियों को शपथ दिलाई। सिल्क के ध्वज को सेंट्रल हॉल में 8:30 बजे 21 तोपों की सलामी के साथ फहराया गया फिर नवनियुक्त गवर्नर जनरल माउंटबेटन व भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू लगभग 5000 बच्चों और उनके मातापिता से मिलने गए जो पुरानी दिल्ली के रोशन आरा बाग में एकत्रित हुए थे।

हालांकि भावनाएं बहुत अधिक चल रही थी,भारतीय नेताओं द्वारा नियोजित समारोह बहुत गंभीर था। मेन इवेंट का आयोजन इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में होना था। शुरू में यह तय किया गया की यूनियन जैक को उतारा जाएगा और प्रधानमंत्री तिरंगा फहराएंगे। इसके बाद एक छोटी परेड होनी थी। हालांकि अंतिम समय में कार्यक्रम में बदलाव किया गया।

माउंटबेटन ने जो कुछ हुआ उसका विस्तृत विवरण दिया है।

उन्होंने उल्लेख किया– “शाम 6:00 बजे दिन का महान आयोजन होना था, नए डोमिनियन ध्वज की सलामी। इस कार्यक्रम में मूल रूप से यूनियन जैक को औपचारिक रूप से कम करना शामिल था, लेकिन जब मैंने नेहरू के साथ इस पर चर्चा की तो वह पूरी तरह सहमत थे कि यह एक ऐसा दिन था जब वह चाहते थे कि हर कोई खुश रहे और अगर किसी तरह से यूनियन जैक को कम करने से ब्रिटिश संवेदनशीलता को ठेस पहुंची तो उन्हें निश्चित रूप से देखेंगे कि ऐसा न हो।

(संदर्भमाउंटबेटन पेपर्स ब्रिटिश लायब्रेरी, बी.एल./आईओआर:एल/पीओ/6/123)

ऐसा लगता है कि यूनियन जैक किसी के लिए बिलकुल भी मुद्दा नहीं था बल्कि आयुष को भीड़ की ज्यादा चिंता थी। पामेला माउंटबेटन ने अपनी डायरी में उल्लेख किया है कि ग्रैंड स्टैंड लोगों के समुद्र के नीचे दबे हुए थे और परेड का एकमात्र संकेत प्रिंसेस पार्क के केंद्र में कहीं उज्जवल पगड़ी की एक पंक्ति थी। नेहरू और माउंटबेटन के लिए समारोह के लिए मंच तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया था। अंत में नेहरू मंच पर पहुंचे उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फसहराया इसके बाद राष्ट्रगान गाया गया और 21 तोपों की सलामी दी गई।

लाल किले में नेहरू

अगले दिन 16 अगस्त की सुबह 8:00 बजे फिर से तिरंगा फहराया। इस बार स्थल ऐतिहासिक लाल किला था। नेहरू ने तब पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण दिया जिस पर उन्होंने खुद को भारत का प्रथम सेवक कहा।

भारत की स्वतंत्रता के आसपास की घटनाओं में यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने प्रतिक्रियावादी घटना के रूप में अंतिम परिणाम की परिकल्पना नहीं की थी। वह स्पष्ट थे की औपनिवेशिक शासन का मतलब पूरी तरह से ब्रिटिश जाति द्वारा शासन नहीं था। उन्होंने अपने संघर्ष से नस्लीय और धार्मिक कारकों को अलग रखते हुए ब्रिटिश व्यवस्था का विरोध किया लेकिन ब्रिटिश लोगों का नहीं।

एक उम्मीद है कि भारत गैरप्रतिक्रिया आबादी मानवीय और विनम्र राष्ट्रवाद की हमारी विरासत को पुन: प्राप्त करने में सक्षम होगा।

(संदर्भलेखक सीएसडीएस में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और नई किताब सियासी मुस्लिम : ए स्टोरी आफ पालिटिकल इस्लाम्स इन इंडिया के लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)

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राष्ट्रध्वज की कहानी

(अमृत महोत्सव 2022)

शोध एवं आलेख

डॉ रवि अतरौलिया

रिटायर्ड डीएसपी

सौजन्य

प्यारे भारतवासियों,

मैं आपका अपना राष्ट्रध्वज बोल रहा हूं। मेरे बारे में आपके संपूर्ण जानकारी नहीं दी गई, क्यों नहीं दी गई? कौन जिम्मेदार है? यह प्रश्न आज औचित्यहीन है, अतः अब मैं स्वयं आपके सामने आया हूं, अपने बारे में आप सभी को बताने के लिए। गुलामी की काली स्याह रात के अंतिम प्रहार जब स्वतंत्रता के सूर्य के निकलने का संकेत प्रभात बेला ने दिया, उस दिन 22 जुलाई 1947 को भारत की संविधान सभा कक्ष में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मुझे विश्व एवं भारत के नागरिकों के सामने प्रस्तुत किया यह मेरा जन्म पल था। मुझे भारत का राष्ट्रध्वज स्वीकार कर सम्मान दिया। इस अवसर पर पंडित नेहरू ने बड़ा मार्मिक हृदयस्पर्शी भाषण भी दिया तथा माननीय सदस्यों के समक्ष मेरे दो स्वरूप, एक रेशमी खादी व दूसरा सूती खादी से बना ध्वज प्रस्तुत किया। सभी ने करतल ध्वनि के साथ मुझे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया। आजादी के दीवानों के बलिदान व त्याग की लालिमा मेरी रगों में बसी है, इन्हीं दीवानों के कारण मेरा जन्म संभव हुआ। 14 अगस्त 1947 की रात 10:45 पर काउंसिल हाउस के सेंट्रल हॉल में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व में वंदे मातरम के गायन से कार्यक्रम शुरू हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषण हुए, इसके बाद श्रीमती हंसाबेन मेहता द्वारा अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को मेरा सिल्क वाला स्वरूप सोपा गया और श्रीमती हंसाबेन मेहता ने कहा कि,”आजाद भारत में पहला राष्ट्रध्वज जो इस सदन में फहराया जाएगा वह भारतीय नारी शक्ति की ओर से इस राष्ट्र को एक उपहार है।सभी लोगों के समक्ष मेरा यह पहला प्रदर्शन था। सारे जहां से अच्छा व जनगणमन के सामूहिक गान के साथ यह समारोह संपन्न हुआ।

23 जून 1947 को मुझे जाकर देने के लिए एक अस्थाई समिति का गठन हुआ था, जिसके अध्यक्ष थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा समिति में उनके साथ थे अब्दुल कलाम आजाद, के. एम. पाणीकर, श्रीमती सरोजिनी नायडू, के. एम. मुंशी, श्री राजगोपालाचारी और डॉ. बी. आर. अंबेडकर। विस्तृत विचार विमर्श के बाद मेरे बारे में निर्णय लिया गया और संविधान सभा में स्वीकृति प्राप्त हेतु पंडित जवाहरलाल नेहरू को अधिकृत किया, जिन्होंने 22 जुलाई 1947 को सभी की स्वीकृति प्राप्त की और मेरा जन्म हुआ।

पंडित नेहरू ने मेरे मानक बताएं जिन्हें आपको जानना जरूरी है। (जिसका उल्लेख भारतीय मानक संस्थान के क्रमांक आईएसआई 1-1951 संशोधन 1968 में किया गया) उन्होंने कहा भारत का राष्ट्रध्वज समतल तिरंगा होगा, यह आयताकार होकर इसकी लंबाई चौड़ाई का अनुपात 2:3 होगा, तीन सामान रंग की आड़ी पट्टीका होगी। सबसे ऊपर केसरिया, मध्य में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी होगी। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ का 24 शलाकाओं वाला चक्र होगा, जिसका व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा तथा ध्वज के दोनों तरफ अंकित होगा। मेरे(राष्ट्रध्वज) निर्माण में जो वस्त्र उपयोग में लाया जाएगा, वह खादी का होगा अथवा सूती, ऊनी या रेशमी भी हो सकता है लेकिन शर्त यह होगी कि राष्ट्रध्वज का सूत हाथ से काता जाएगा एवं हाथ से कपड़ा बुना जाएगा। इसमें हाथकरघा सम्मिलित है। सिलाई के लिए केवल खादी के धागों का ही प्रयोग होगा।आपको बताऊं मेरे कपड़े का निर्माण स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के एक समूह द्वारा पूरे देश में एकमात्र उत्तरी कर्नाटक जिला धरवाड़ के गरग नामक गांव जो बेंगलुरुपुणे रोड पर स्थित है, किया जाता है। इसकी स्थापना 1954 में हुई। नियमानुसार राष्ट्रध्वज के खादी के एक वर्ग फीट कपड़े का वजन 205 ग्राम होना चाहिए। हाथ से बनी खादी जिसका प्रयोग राष्ट्रध्वज एनिर्माण के लिए होता है वह यही केंद्र है परंतु अब राष्ट्रध्वजों का निर्माण क्रमशः ऑर्डिनेंस क्लॉथिंग फैक्ट्री शाहजहांपुर, खादी ग्रामोद्योग आयोग मुंबई एवं खादी ग्रामोद्योग दिल्ली में होने लगा है तथा निजी निर्माताओं द्वारा भी राष्ट्रध्वज निर्माण पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन राष्ठ्रध्वज के गौरव व गरिमा को द्रष्टिगत रखते हुए जरूरी है कि केवल आईएसआई (भारतीय मानक ब्यूरो) की मोहर लगी हो। मेरे(राष्ट्रध्वज) के रंगों का अर्थ स्पष्ट किया कि केसरिया रंग साहस और बलिदान का, सफेद रंग सत्य और शांति का तथा हरा रंग श्रद्धा व शौर्य का प्रतीक होगा तथा 24 सलाकों वाला नीला चक्र 24 घंटे सतत प्रगति तथा प्रगति भी अंतहीन हो, जैसा कि नीला अनंत विशाल आकाश एवं नीला अथाह गहरा सागर।

आपको लगता है कि आप भी अपने घरों व दुकानों पर राष्ट्रध्वज वर्ष भर फहरायें लेकिन जब तक मेरे मान सम्मान सहित फहराने का ज्ञान प्रत्येक नागरिक को ना हो जाए तब तक आपको यह छूट कैसे दी जा सकती है। लेकिन अब आपको वैधानिक रूप से 365 दिन यानी वर्ष भर ससम्मान ध्वजारोहण का अधिकार जनवरी 2002 से प्राप्त हो गया है। साल भर ना सही, आप निम्न तारीखों पर मेरा ध्वजारोहण सूर्योदय के समय तेजी से उल्लास के साथ करके व सूर्यास्त के समय धीरे आ ससम्मान उतार के कर सकते हैं, लेकिन मोटर कारों पर साधारण नागरिक को राष्ट्रध्वज लगाने पर प्रतिबंध है।

राष्ट्रीय पर्व की तिथियां

1. 26 जनवरी से 29 जनवरी तक(बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम होने तक)

2. 6 अप्रैल से 13 अप्रैल तक(राष्ट्रीय सप्ताह में जो जलियाँवाला बाग.के शहीदों की स्मृति में मनाया जाता है।)

3. 15 अगस्त(स्वतंत्रता दिवस)

4. 2 अक्टूबर (महात्मा गांधी जयंती)

5. भारत सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय उल्लास का अन्य कोई दिन

. किसी भी राज्य में उस राज्य की गठन की जयंती पर (जैसे मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ का गठन 1 नवंबर को हुआ)

.भारत सरकार किसी भी क्षेत्र में स्थानीय समारोह के उपलक्ष में किसी विशिष्ट दिन राष्ट्रीय ध्वज प्रतिप्रबंध रहित रूप से फहराने का अधिकार प्रदान करती है।

जब कोई राष्ट्र विभूति महान व्यक्ति, राष्ट्राध्यक्ष आदि का निधन होता है तब उन्हें सम्मान देने के लिए शोक घोषित किया जाता है और इस दौरान मुझे (राष्ट्रध्वज को) शोक स्वरूप झुका दिया जाता है। झुका देने का आशय झुका देना नहीं अपितु ध्वज दंड के मध्य फहराने की स्थिति को झुकाना माना जाता है। यदि राष्ट्रध्वज ले जाते हुए परेड या जुलूस के रूप में शोक मनाया जाता हो तो भाले के अग्र भाग में काले कपड़े(क्रेप) की दो पट्टियां लगा दी जाएगी जो स्वाभाविक रूप से लटकी रहेगीं। ऐसा प्रयोग शासनादेश पर ही होगा।

विशेषभारतीय संहिता में जो 9 साइज के मानक ध्वज हैं, उन्हें छोड़कर उनसे बड़े और बहुत बड़े ध्वज भी सशर्त फहराये जा सकते हैं। सूर्यास्त के समय ध्वज पर पर्याप्त रोशनी होना चाहिए।

विशेष परिस्थिति

राष्ट्रीय उत्साह के पर्वों पर अर्थात 15 अगस्त 26 जनवरी के अवसर पर किसी राष्ट्र विभूति का निधन होता है तथा राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाकर मुझे(राष्ट्रध्वज) झुका दिया जाना चाहिए लेकिन मेरे भारतवासियों इन दिनों में सभी जगह कार्यक्रम एवं ध्वजारोहण सामान्य रूप से होगा लेकिन यहां जिस भवन में उसे राष्ट्र विभूति का पार्थिव शरीर रखा है, वहां उस भवन का ध्वज झुका रहेगा तथा जैसे ही पार्थिव शरीर अंत्येष्टि के लिए बाहर निकालते हैं वैसे ही मुझे (राष्ट्रध्वज) पूरी ऊंचाई से फहरा दिया जाएगा।

शवों पर लपेटना

राष्ट्र पर प्राण न्यौछावर करने वाले फौजी रणबांकुरों के शवों पर एवं राष्ट्र की महान विभूतियों के शवों पर भी मुझे उनकी शहादत को सम्मान देने के लिए लपेटा जाता है, तब मेरी केसरिया रंग की पट्टी सिर तरफ एवं सफेद रंग की पट्टी चक्र सहित पेट पर और हरे रंग की पट्टी जंघाओं तरफ होनी चाहिए ना कि सर से लेकर पैर तक सफेद पट्टी चक्र सहित आए और केसरिया और हरे रंग पट्टी दाएं बाएं हो। याद रहे शाहीद या विशिष्ट व्यक्ति के शव के साथ मुझे जलाया या दफनाया नहीं जाए बल्कि मुखाग्नि क्रिया से पूर्व या कब्र में शरीर रखने से पूर्व मुझे हटा लिया जाए।

नष्टीकरण

अमानक, बदरंग, कटी फटी स्थिति वाला मेरा स्वरूप फहराने योग्य नहीं होता। ऐसे ध्वज फहराना मेरा अपमान होकर अपराध है, अतः वक्त की मार से जब कभी मेरी स्थिति ऐसी हो जाए तो मुझे गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ अग्नि प्रवेश करा दें या वजन या रेत बांधकर पवित्र नदी में जल समाधि दे दें। इसी प्रकार पार्थिव शरीर पर से उतारे गए ध्वजों को भी साथ करें। वर्तमान में एक नई व्यवस्था जुड़ गई है कि शाहीद या विशिष्ट व्यक्ति के परिजनों को वह राष्ट्रध्वज जो उढ़ाया गया था, उन्हें स्मृति चिन्ह के स्वरूप प्रदान कर दिया जाए।

मेरा अपमान

मुझे पानी की सतह पर स्पर्श कराना, भूमि पर गिरना, फाड़ना, जलाना, मुझ पर लिखना तथा मेरा व्यावसायिक उद्देश्य से उपभोक्ता वस्तु पर प्रयोग अपराध होता है। मुझे किसी के सामने झुकना भी मेरा अपमान कहलाएगा।

शोक का प्रभाव क्षेत्र

. राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के लिए क्षेत्र संपूर्ण भारत में रहेगा।

. लोकसभा अध्यक्ष एवं भारत के मुख्य न्यायाधिपति के लिए क्षेत्र दिल्ली रहेगा।

. केंद्रीय मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री के लिए क्षेत्र केवल दिल्ली व राज्य की राजधानियों में रहेगा।

. केंद्रीय राज्य मंत्री और उपमंत्री के लिए क्षेत्र केवल दिल्ली व राज्य की राजधानियों में रहेगा।

. राज्यपाल, उपराज्यपाल, राज्य के मुख्यमंत्री, संघ शासित क्षेत्र के मुख्यमंत्री के लिए क्षेत्र दिल्ली में,संबंधित संपूर्ण राज्य व संघ शासित क्षेत्र में रहेगा।

. किसी राज्य में मंत्रीमंडल स्तर के मंत्री के लिये क्षेत्र संबंधित राज्य की राजधानी में रहेगा।

नोट:- दिल्ली से तात्पर्य दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगरपालिका और छावनी बोर्ड के आधीन आने वाले समस्त क्षेत्र से है।

भारतीय ध्वज संहिता (फ्लेग कोड आफ इंडिया 2022 के अनुसार राष्ट्रध्वज मानक राष्ट्रध्वज 9 प्रकार के हैं –

  1. इसमें सबसे छोटा6 बाय 4 इंच का है, जो मीटिंग व कॉन्फ्रेंस आदि में टेबल फ्लैग के रूप में इस्तेमाल होता है
  2. वीआईपी की कारों में9 बाय 6 इंच के ध्वज जो दोहरी परत के होते हैं लगाये जाते हैं।
  3. राष्ट्रपति के,वीआईपी एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए18 बाय 12 इंच के दोहरी परत वाले ध्वज होते हैं।
  4. कमरों में क्रास बार के रूप में या अपने मकान/संस्थान पर लगाने वाले झंडे3 बाय 2 फुट के होते हैं।
  5. बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग पर लगने वाले झंडे साडे5.5 बाय 3 फुट के होते हैं।
  6. शहीद सैनिकों के शवों,विशिष्ट व्यक्तियों के,शवों और छोटे सरकारी भवनों के लिए 6 बाय 4 फुट के ध्वज अधिकृत है।
  7. संसद भवन और मीडियम साइज के सरकारी भवनों पर 9 बाय 6 फुट की ध्वजा लगते हैं।
  8. गन कैरिएज, लाल किला, राष्ट्रपति भवन के लिए12 बाय 8 फुट का ध्वज अधिकृत है।
  1. सबसे बड़ा तिरंगा21 बाय 14 फुट का होता है जो बहुत बड़ी बिल्डिंग पर लगाया जाता है। आपको बताऊं 26 जनवरी 2010 तक इस साइज का ध्वज कहीं भी फहराया नहीं गया था कारण तब इतने बड़े ध्वज दंड नहीं होते थे।

मेरे प्यारे भारतवासियों,

आपको ऐसी बात बताने जा रहा हूँ, जिससे मैं प्रसन्न हूं। आपको मैंने बताया था कि 22 जुलाई 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा संविधान सभा में मेरे दो स्वरुप क्रमशः सूती खादी एवं सिल्क से निर्मित ध्वज लेकर गए थे तथा उसे सभा में मुझे अंगीकार किया गया था और 14 अगस्त, 1947 को रात्रि में श्रीमती हंसाबेन मेहता ने मुझे फहराने हेतु तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा था और वही सिल्क का ध्वज 16 अगस्त 1947 को सुबह 8.30 बजे लाल किले से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा ध्वजारोहण किया था । इस मायने में मेरा वह स्वरुप ऐतिहासिक बन गया था, जिससे हर भारतवासी स्मरण स्वरुप बार-बार देखने की कामना रखते होंगे, लेकिन अफसोस कि तत्कालीन लोगों द्वारा मेरे स्वरूप को कहीं रखकर भूला दिया गया और स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि मेरा स्वरुप (ऐतिहासिक राष्ट्रध्वज) कहाँ है ? किसी को पता नहीं और न ही मुझे खोजने मे तत्परता या रुचि दिखाई जा रही थी। लेकिन 45 साल बाद मेरा गुमाह हुआ स्वरुप अब मिल गया है। जो आर्मी बैटल आनर्स मेस (ABHA) चाणक्यपुरी में मिला है। मेरा यह स्वरुप दिल्ली राजस्थान सब एरिया मेस (पूर्व में) मिला जो 8×12 फिट का है जिसे अब आप मेरे ऐतिहासीक स्वरुप को निहार कर गर्व अनुभव करते हुए मुझे पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने हेतु तत्पर रहेगे।

आप सभी का स्वाभिमान

प्यारा तिरंगा – राष्ट्रध्वज
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कार्यक्रम हेतु सम्पर्क – रवि अतरोलिया, तिरंगा अभियान प्रमुख मोबाइल : 7000039760 ईमेल : raviatroliya@gmail.com

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(English Virsion)

The Story of the National Flag
(Amrit Mahotsav 2022)

Research and Article by
Dr. Ravi Atrauliya
(Retired DSP)

Courtesy
(Anyone wishing to reprint this article may add their logo and organization name for distribution.)

Dear Indians,
I am your National Flag speaking to you. Complete information about me has not been shared with you. Why not? Who is responsible? This question is irrelevant now. Thus, I have come before you myself to share my story with you all.

On the dawn of freedom, as the dark night of slavery was coming to an end and the morning heralded the arrival of the sun of independence, I was introduced on July 22, 1947, in the hall of the Constituent Assembly of India by Pandit Jawaharlal Nehru to the people of India and the world. This was the moment of my birth. I was honored and accepted as the National Flag of India. On this occasion, Pandit Nehru delivered a touching and heartfelt speech. Two versions of me—one made of silk khadi and the other of cotton khadi—were presented before the assembly. With resounding applause, I was accepted as the National Flag of independent India.

The sacrifice and dedication of the martyrs of India’s freedom struggle run deep in my veins, as it was due to them that my birth became possible. On the night of August 14, 1947, at 10:45 PM, a program began in the Central Hall of the Council House under the leadership of Mrs. Sucheta Kripalani with the singing of “Vande Mataram.” Speeches by Dr. Rajendra Prasad, President of the Constituent Assembly, and Pandit Jawaharlal Nehru followed. Subsequently, the silk version of me was handed over to Dr. Rajendra Prasad by Mrs. Hansaben Mehta, who said, “The first National Flag to be hoisted in this assembly is a gift from the women of India to this nation.”

This was my first public display. The ceremony concluded with the collective singing of “Sare Jahan Se Achha” and “Jana Gana Mana.”

On June 23, 1947, a temporary committee was formed to finalize my design. It was chaired by Dr. Rajendra Prasad and included members like Maulana Abul Kalam Azad, K.M. Panikkar, Mrs. Sarojini Naidu, K.M. Munshi, Shri Rajagopalachari, and Dr. B.R. Ambedkar. After extensive discussions, a decision was made, and Pandit Jawaharlal Nehru was authorized to present it to the Constituent Assembly. On July 22, 1947, I was unanimously accepted.

Pandit Nehru outlined my specifications, which you should know. (As mentioned in Indian Standards ISI 1-1951, revised in 1968.) He stated that the National Flag of India would be a horizontal tricolor in rectangular form, with a length-to-width ratio of 2:3. The flag would consist of three equally wide horizontal bands of saffron at the top, white in the middle, and green at the bottom. In the middle of the white band, there would be a navy-blue Ashoka Chakra with 24 spokes, matching the width of the white band, printed on both sides.

The cloth used for my creation would be khadi—hand-spun and hand-woven cotton, wool, or silk. The stitching threads would also be made of khadi. My fabric is produced in a single location in the entire country by a group of freedom fighters in Garag village, Dharwad district, northern Karnataka, located on the Bengaluru-Pune road. This center was established in 1954. The weight of one square foot of khadi cloth used for my creation should be 205 grams. Over time, the production of flags has also commenced at the Ordnance Clothing Factory in Shahjahanpur, and through the Khadi and Village Industries Commission in Mumbai and Delhi. Private manufacturers are not prohibited from making flags, provided they bear the ISI certification mark to ensure quality and respect for my dignity.

The significance of my colors was explained: saffron represents courage and sacrifice, white signifies truth and peace, green symbolizes faith and valor, and the blue Ashoka Chakra with 24 spokes represents continuous progress, as infinite as the vast blue sky and the deep blue ocean.

You may think of hoisting me at your homes and shops throughout the year, but this privilege requires that every citizen be educated about my respectful handling and hoisting. However, since January 2002, you have been granted the legal right to hoist me with respect all year round. Even if not year-round, you can hoist me on specific dates at sunrise with enthusiasm and lower me respectfully at sunset. However, ordinary citizens are still prohibited from displaying me on motor vehicles.

 

Indian Flag Code

According to the Flag Code of India 2022, the standard national flag comes in nine types:

1. The smallest flag measures 6 x 4 inches, used as a table flag in meetings and conferences.

2. 9 x 6 inch dual-layered flags are used on VIP cars.

3. 18 x 12 inch dual-layered flags are designated for the President, VIP aircraft, and trains.

4. 3 x 2 feet flags are used indoors as crossbars or for display at homes and institutions.

5. 4.5 x 3 feet flags are used on small public buildings.

6. 6 x 4 feet flags are authorized for martyrs’ coffins, distinguished personalities, and small government buildings.

7. 9 x 6 feet flags are hoisted on the Parliament building and medium-sized government buildings.

8. 12 x 8 feet flags are authorized for gun carriages, the Red Fort, and the Rashtrapati Bhavan.

9. The largest flag, measuring 21 x 14 feet, is used for huge buildings. Interestingly, until January 26, 2010, this size of the flag was never hoisted due to the lack of sufficiently large flagpoles at the time.

My dear Indians,

I am going to tell you such a thing that I am happy. I told you that on 22 July 1947, my two forms of cotton khadi and silk were adopted by Pandit Jawaharlal Nehru in the Constituent Assembly and I was adopted in the meeting and I was entrusted by the then President Dr. Rajendra Prasad to hoist me at night at night on August 14, 1947 and the then Chalak of Silk was given to the then President of the Silk, the then Silk’s flag was given to me. The flag was hoisted by Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru. In this sense, that form of mine had become historic, so that every Indian would have wished to see again and again as a memory, but regrettably, my form was forgotten by the then people and the situation reached here that where is my form (historical national flag)? Nobody knows nor was I shown readiness or interest in finding me. But after 45 years, my lost form has now been found. The Army Battle Honors Mess (Abha) is found in Chanakyapuri. This form of mine was found in Delhi Rajasthan Sub Area Mess (in the past) which is 8×12 feet, which you will now be ready to surprise my life on my life by looking proud to be proud.

Self -respect of all of you

Cute Tricolor – National Flag
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