राष्ट्रगान– जन–गण–मन
1. रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा रचित
” जन–गण–मन ” को राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को इसके पहले पद को स्वीकार किया गया।
2. रविंद्र नाथ टैगोर ने 1911 में इसकी रचना की, मूलरूप में इसके पांच पद है।
3. राजनीतिक मंच पर सर्वप्रथम 27 दिसंबर 1911 में कोलकाता अधिवेशन में गया गया।
4. सर्वप्रथम जनवरी 1912 में रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा संपादित पत्रिका ” तत्त्वबोधिनी ” पत्रिका में “भारत विधाता ” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
5. रविंद्र नाथ टैगोर ने 1919 में अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया और शीर्षक दिया–
” Morning Song of India “
6. राष्ट्रगान की समय सीमा निर्धारित है –
अ. समूह गान की समय सीमा 48 से 52 सेकंड
ब. वाद्य यंत्र/मिलिट्री/पुलिस बैंड पर ठीक 52 सेकंड निश्चित है।
स. लघु धुन 20 सेकंड की होती है। इसमें राष्ट्रगान की पहली व आखिरी पंक्ति को बजाया जाता है।
यह धुन तब बजाई जाती है जब राष्ट्रपति या राज्यपाल के किसी कार्यक्रम में आगमन व निर्गमन होता है।
तथा अंतरराष्ट्रीय खेलकूद प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ी प्रथम, द्वितीय या तृतीय स्थान पाते हैं।
7. राष्ट्रगान के सम्मान में सावधान खड़े होना आवश्यक है।
8. राष्ट्रगान का अपमान अपराध है।
राष्ट्रगान– जन–गण–मन
24 जनवरी 1950 को अंगीकृत किया गया पद
जन–गण–मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता
पंजाब–सिंधु–गुजरात–मराठा द्राविड़–उत्कल–बंग
विंध्य, हिमाचल, यमुना गंगा, उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जय गाथा
जन–गण–मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे,
जय जय जय जय हे
राष्ट्रगान जन गण मन का हिंदी अनुवाद जो अंग्रेजी से किया गया
“आप सभी लोगों के मन के शासक हैं
भारत के भाग्य विधाता हैं
आपके नाम से पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्रविड़ उड़ीसा एवं बंगाल का हृदय धड़कता है
यह विंध्य एवं हिमाचल के पर्वत में गूंजता है
यमुना और गंगा के संगीत में घुल मिल जाता है
हिंद महासागर की लहरों द्वारा जपा जाता है
वे आपका आशीष पानी की प्रार्थना करते हैं और आपकी स्तुति करते हैं। सभी मनुष्यों की रक्षा आपके हाथ में है
आपकी जय हो जय हो जय हो “
राष्ट्रगान– जन–गण–मन
मूल रूप के पांच पद
(1)
जन–गण–मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता,
पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंग,
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग,
तव शुभ नामे जागे, तव शुभआशीष मांगे,
गाहे तव जय गाथा,
जन–गण–मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
(2)
अहरह तव आव्हान प्रचारित, शुनि तव उदार वाणी
हिंदू–बौद्ध–सिक्ख–जैन–पारसिक मुसलमान–ख्रस्टानी
पूरब पश्चिम आसे
तव सिंहासन–पासे
प्रेमहार हय गाथा!
जन–गण–मेक्य–विधायक जय हे भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
(3)
पतन–अभ्युदय–बंधुर पंथा, युग युग धावित यात्री
हे चिर सारथि! तव रथ चक्रे, मुखरित पथ दिन–रात्रि
दारुण विप्लव माझे,
तब शंख ध्वनि बाजे
संकट–दु:खा–त्राता!
जन गण पथ परिचायक जय हे भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
(4)
घोर– तिमिर–घन–निविड–निशीते पीड़ित मूर्छित देशे
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल नतनयने अनिमेषे
दु:स्वप्ने आतंके
रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता
जन–गण दु:ख त्रायक जय हे भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
(5)
रात्रि प्रभातिल, उदिल रविच्छवि पूर्व–उदयगिरी भाले
गाहे विहंगम, पुष्य समीरण नव–जीवन रस ढाले
तव करुणा रुण–रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरण नत माथा!
जय जय जय हे राजेश्वर भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे
जय जय जय जय हे
राष्ट्रगान के मुख्य शब्दों का हिंदी व अंग्रेजी में अर्थ
राष्ट्रगान के मुख्य शब्दों का हिंदी व अंग्रेजी में अर्थ |
|||
क्र. |
शब्द |
देवनागरी |
अंग्रेजी में |
1 |
जन |
आम जनता |
People |
2 |
गण |
गणतंत्र |
Republic |
3 |
मन |
मन मस्तिष्क |
Soul, Mind |
4 |
अधिनायक |
शासक |
Ruler |
5 |
जय हे |
तुम्हारी जय हो |
Victory to Thee |
6 |
भारत |
भारत |
India |
7 |
भाग्य |
भाग्य |
Destiny |
8 |
विधाता |
देने वाला |
Dispenser |
9 |
उच्छल |
गर्जना |
Roaring |
10 |
जलधि |
सागर |
On Water |
11 |
तरंग |
लहर |
Waves |
12 |
तव |
आपके |
Yours |
13 |
शुभ |
सौभाग्य |
Good Luck |
14 |
नामे |
नाम |
Name |
15 |
जागे |
जागना |
Rises |
16 |
आशीष |
आशीर्वाद |
Blessings |
17 |
मागे |
मांगे |
Demand |
18 |
गाहे |
गाएं |
Singing |
19 |
जय गाथा |
विजय गान |
Song of Victory |
20 |
मंगल दायक |
मंगलकारी |
Wishing Happiness |
कैसे बना टैगोर का ‘भारतो –भाग्यो–बिधाता‘ राष्ट्रगान?
जानिए ‘जन–गण–मन‘ का ऐतिहासिक सफर
भारत भाग्य विधाता… साल 1911 में कलकत्ता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के दूसरे सेशन में पहली बार इस बंगाली गीत को लोगों ने सुना जिसे खुद टैगोर ने गाया था। इस गीत के हिंदी अनुवाद से पहले साल 1919 में टैगोर ने खुद इस गीत को अनुवाद अंग्रेजी में किया, जिसे नाम दिया ‘द मार्निंग सांग ऑफ इंडिया‘। 28 फरवरी 1919 में पहली बार कोलकाता ( तब कलकत्ता) से बाहर टैगोर ने आंध्र प्रदेश के मदनापल्ले के थियोसोफिकल कॉलेज में खुद इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद गाया था।
“भारत भाग्य विधाता” ये उसी बंगाली गीत के बोल हैं जिसके हिंदी स्वरूप को भारत के राष्ट्रगान के तौर पर अपनाया गया। वो राष्ट्रगान जिसे सुनकर, जिसे गाकर हम 140 करोड़ भारतीयों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जिसे सुनकर देशभक्ति की अलग ही अनुभूति होती है। जो हमें ये याद दिलाता है कि भारत को आजाद कराने के पीछे कितने ही लोगों का खून –पसीना और बलिदान है और ये जानना जरूरी है कि हमारे राष्ट्रगान का भी अपना एक अलग इतिहास है। इस साल हमारी आजादी के 78 साल हो रहे हैं, लेकिन हमारे राष्ट्रगान का इतिहास आज़ादी से भी कई दशक पहले का है। “Bharato Bhagyo Bidhata” से “Jan-Gan-Man” तक का एक सफर है हमारे राष्ट्रगान का। तो आइए जानते हैं कि कैसै एक बंगाली गीत ने हिंदी स्वरूप में देश का राष्ट्रगान बनकर देश को पहचान दिलाई।
कैसे हुई राष्ट्रगान की रचना?
भारत का राष्ट्रगान जन–गण–मन प्रसिद्ध लेखक और कवि रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखे गए बंगाली गीत ‘भारतो–भाग्यो बिधाता‘ का हिंदी संस्करण है। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इस बंगाली गीत को 5 स्टेंजा में लिखा था और साल 1905 में पहली बार बंगाल की पत्रिका ‘तत्वबोधिनी पत्रिका‘ में प्रकाशित हुआ था। साल 1911 में कलकत्ता में इंडियन नेशनल कांग्रेस के दूसरे सेशन में पहली बार इस बंगाली गीत को लोगों ने सुना जिसे खुद टैगोर ने गाया था। इस गीत के हिंदी अनुवाद से पहले साल 1919 में टैगोर ने खुद इस गीत को अनुवाद अंग्रेजी में किया जिसे नाम दिया ‘द मार्निंग सॉंग ऑफ इंडिया‘।
28 फरवरी 1919 में पहली बार कलकत्ता से बाहर टैगोर ने आंध्र प्रदेश के मदनापल्ले के थियोसोफिकल कॉलेज में खुद इस गीत का अंग्रेजी अनुवाद गाया था। साल 1943 में इस बंगाली गीत का हिंदी अनुवाद किया गया जिसे शुभ–सुख–चैन नाम दिया गया और उसी साल इस हिंदी अनुवाद को भारत के राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया।
भारत को राष्ट्रगान देने में सुभाष चंद्र बोस की भूमिका
साल 1942 में जर्मनी के हैमबर्ग में भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश के खिलाफ प्रशिक्षण देते समय बोस को महसूस हुआ कि एक ऐसा गीत होना चाहिए जिसे सुनकर सैनिकों में देश की आज़ादी को लेकर जोश बना रहे। देश को आज़ाद कराने के लिए हर सैनिक अपनी पूरा दम–ख़म लगा दें और उनका हौसला बना रहे। जिस समय नेताजी जर्मनी में सैनिकों को प्रशिक्षित कर रहे थे उस समय तक भारतो–भाग्यो बिधाता भारत में एक लोकप्रिय गीत के रूप में अपनी पहचान बना चुका था। उस समय देश के लिए एक राष्ट्रगान तय करने के लिए बर्लिन में एक मीटिंग हुई जिसमें बोस ने ये तर्क दिया कि आज़ाद भारत के राष्ट्रगान के लिए ये गीत सबसे उत्तम है और इस तरह उन्होंने भारतो–भाग्यो बिधाता को देश का राष्ट्रगान घोषित किया।।
NATIONAL ANTHEM – JAN-GAN-MAN
The following is Tagor’s English rendering of The Stanza:-
(1)
Thou art the ruler of the minds of all people,
Dispenser of India’s destiny.
Thy name rouses the hearts of Punjab, Sindhu, Gujarat and Maratha,
Of the Dravida and Orissa and Bengal;
It echoes in the hills of the Vindhyas and Himalayas,
Mingles in the music of Jamuna and Ganges
and is chanted by the waves of the Indian Sea.
They pray for thy blessings and sing thy praise.
The saving of all people waits in thy hand,
Thou dispenser of India’s destiny.
Victory, victory, victory to thee.
(2)
Day and Night, Thy voice goes out from land to land,
Calling the Hindus, Buddhist, Sikhs and Jesus round the throne
and the Parsees, Musalmans and Christians.
The East and The West join hands-on their prayer to thee,
and the garland of love woren.
Thow bringest the Hearts of all people in to the Harmony of one life,
Thou dispenser of Indias destiny.
Victory, Victory, Victory to thee.
(3)
The procession of pilgrims passes over the endless
road rugged with the rise and fall of Nations
and it redounds with the thunder of thy wheels,
Eternal Charioteer, Through the dire day’s of doom
thy trumpet Sound and men are led by thee across death.
Thy finger points the Path to all People.
(4)
The darkness was dense and deep was the Night.
My Country lay in a death like Silence of Swoon
But thy Mother-arms were round her and thine eyes
gazed open her troubled face in Sleepless love
through her hours of ghastly dreams.
Thou are the Companion and the Saviour of the people
in their Sorrows, thou dispenser of India’s destiny.
Victory Victory Victory to htee.
(5)
The Night faded, the lights breaks over the peak of the Estern hills,
the birds begin to Sing and the Morning breeze
carries the breath of New life.
The rays of thy mercy have thousand the walking land
with their blessings. Victory to thee King,
Victory to thee dispenser of India’s destiny.
Victory Victory Victory to thee.
राष्ट्रगान में उच्चारण दोष
1. जण–गण–मण/ जन–गन–मन/ जन–मण–गण
यह गलत है सही क्या होगा – जन गण मन
2. पंजाप, पंजाप नहीं पंजाब बोलें
3. सिन्ध नहीं सिंधु बोलें
4. द्राविण उच्छल नहीं अपितु द्राविड़ उत्कल होगा
5. बंगा नहीं बंग बोलें
6. तरंगा नहीं तरंग बोलें
7. तब सुब नामे जागे नहीं, तव शुभ नामे जागे बोलें
8. तब सुब आसिस मांगे नहीं, अपितु तव शुभ आशिष मांगे बोलें
9. गाये तब जय गाता नहीं, अपितु गाहे तव जय गाथा बोलें
आजाद हिंद फौज का गान
नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं उनके साथियों द्वारा यह अनुवाद उनके बर्लिन प्रवास के दौरान किया गया था।
शुभ सुख चैन की बरखा बरसे
शुभ सुख चैन की बरखा बरसे भारत भाग्य है जागा
(1)
पंजाब सिंधु गुजरात मराठा, द्रविड़ उत्कल बंगा
चंचल सागर विंध्य हिमाला, नीला यमुना गंगा
तेरे नित गुण गायें,
तुझ पर शीश नवायें
पायें सब तन आशा
सूरज बनकर जग पर चमके भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो जय हो
जय जय जय जय हो
(2)
सबके दिल में प्रीत बसायें, तेरी मीठी वाणी
हर सूबे के रहने वाले हर मजहब के प्राणी
सब भेद और फर्क मिटा के
सब तेरी गोद में आके
गूंथें प्रेम की माला
सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो जय हो
जय जय जय जय हो
जन–गण–मन राष्ट्रगान –आक्षेप और स्पष्टीकरण
भारत के राष्ट्रगान जन–गण–मन के रचयिता कविवर गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर पर अनर्गल आक्षेप लगते रहे। उसी की दस्तावेजी साक्ष्य आधारित स्पष्टीकरण जो कि पुणे के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,सर्वोदयी समाजसेवी स्वर्गीय यदुनाथ थत्ते की पुस्तक “आपला मान आपला अभिमान” में प्रकाशित तदुपरांत ” प्रकृति विद्या ” जो अक्टूबर–दिसंबर 97 का अंक है, इंदौर में पुन: प्रकाशित डॉ. सुधीर जैन ने ” भारतीय आस्था के स्वर ” में जन–गण–मन.. शीर्षक से संपादकीय में लिखा–
” कतिपय पूर्वाग्रहीजनों ने इसे जॉर्ज पंचम के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु रचित “विरुद गान” के रूप में कल्पित कर लांछित करने की चेष्टा की तो अत्यंत व्यथित हृदय से कविवर ने अपना पक्ष प्रस्तुत करते हुए उत्तर दिया–
” यह सुनकर कि, “मैंने सम्राट जार्ज पंचम के स्वागत गान के रूप में इस गीत की रचना की है।” मुझे आश्चर्य तो हुआ ही मन में रोष का भी संचार भी हुआ। ” शाश्वत मानव– इतिहास के युग युग धाबित पथिकों के चिर सारथी ” कह कर मैं किसी चतुर्थ या पंचम जार्ज की स्तुति कर सकता हूं?- इस प्रकार की निकृष्ट मूढ़ता मेरे मन में होने का जिन्हें संदेह भी हो सकता है, वैसे लोगों को उत्तर देने में भी मैं अपना अपमान मानता हूं।”
(यह वक्तव्य 13 मार्च 1939 को उन्होंने दिया था जो “आपला मान आपला अभिमान पत्रिका में प्रकाशित हुआ। )
कविवर रविंद्र नाथ टैगोर के इस बेबाक स्पष्टीकरण के बाद उक्त अनर्गल कल्पना का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है तथा यह तत्व भी ध्यातत्व है कि सन 1911 में यह गीत रचा गया था और उसके अगले वर्ष 1912 में जॉर्ज पंचम जब भारत आए थे। उनके आगमन के पूर्व ही यह गीत भारतीय स्वतंत्रता के दीवानों के सर्वाधिक बड़े संगठन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रिय बनकर गाया जा चुका था। इसलिए स्पष्ट है कि उक्त आरोप पूर्वाग्रह प्रेरित,ईर्ष्या से उत्पन्न था। उसमें रंचमात्र भी सत्य या तथ्य नहीं है।
वास्तु वह ऐसा युग था कि संपूर्ण भारतवासी राष्ट्रीयता एवं स्वाधीन भारत की भावना से ओतप्रोत थे। उनमें अनन्य राष्ट्रवादी कविवर टैगोर जी, जिनसे मिलने स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी जाते हों एवं “गुरुदेव” के संबोधन से सम्मान सहित उन्हें संबोधित करते हों उन पर लांछन लगाना सूर्य पर धूल फेंकने समान है,जो वस्तुतः फेकने वालों के मुख को ही मलिन करता है।
यह राष्ट्रगान संपूर्ण भारतवासियों के हृदय के भावों को भाषा के माध्यम से दिया गया मूर्त रूप था। यह किसी एक भाषा में लिखा जाकर भी संपूर्ण भाषाओं एवं संपूर्ण भारतवासियों के हृदय की प्रतिध्वनि थी।
इस प्रकार राष्ट्रीयता की भावना जाति भेद, वर्ग भेद, भाषा भेद, संप्रदाय भेद, प्रांत भेद, आदि भेदभावों को मिटाकर एकता का सूत्रपात करने वाली अनन्य अविरोध है। इसी तथ्य को “जन–गण–मन” इस राष्ट्रगान में भारतीय आस्था के स्वरों के साथ अभिन्न रखते हुए कविवर टैगोर जी ने मूर्त रूप में प्रस्तुत किया था, किंतु हमारे राष्ट्रगान के पूर्ण रूप को, उसके परिपेक्ष को, मूल अभिप्राय एवं उद्देश्य को आज भारतवासी कितना जानते हैं यह बिंदू गंभीरता पूर्वक मननीय है।
एक और स्पष्टीकरण राष्ट्रगान पर
14 अगस्त 2016 को नई दुनिया इंदौर समाचार पत्र में प्रकाशित, लेखक – भूमिका मोदी
बीते वर्ष मार्कंडेय काटजू ने अपने ब्लॉग पर लिखा,”यह गीत जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी की दिसंबर 1911 में भारत यात्रा के दौरान बहुत ही कम समय में तैयार किया गया था।
यह भी सवाल उठते हैं कि यह गीत सबसे पहले दिसंबर 1911 में ही कांग्रेस पार्टी के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया था और यह अधिवेशन जॉर्ज पंचम का स्वागत करने के लिए बुलाया गया था। इस अधिवेशन में बंगाल का विभाजन रद्द करने के लिए उनका धन्यवाद भी दिया गया था। अधिवेशन के दूसरे दिन यह गीत गाया गया था और वह दिन जॉर्ज पंचम के स्वागत के लिए मुकर्रर था। काटजू यह भी कहते हैं कि 1937 में जब टैगोर की देशभक्ति पर सवाल उठे तो उन्होंने इस बात से इंकार किया कि उन्होंने यह गीत ब्रिटिश किंग की प्रशंसा में लिखा था।
यह उलझन इसलिए भी हुई क्योंकि उस समय एंग्लो इंडियन ब्रिटिशर्स की तरफ झुकाव रखता था। इस प्रेस की अक्षमता किसी से छुपी नहीं थी। उस समय “द संडे टाइम्स” ने वंदे मातरम को रविंद्र नाथ टैगोर का लिखा गीत बताया था और जन–गण –मन को एक हिंदी गीत।
उस समय जब जॉर्ज पंचम भारत आए थे, तो अंग्रेजी प्रभाव वाले मीडिया ने यही रिपोर्टिंग की कि जॉर्ज पंचम के स्वागत में रविंद्र नाथ टैगोर का गीत गाया गया। यह रिपोर्ट इस कारण हुई क्योंकि अंग्रेजी मीडिया को हिंदी का बहुत कम ज्ञान था और दूसरा वह सटीक रिपोर्टिंग को लेकर सतर्क नहीं थे । “असल में उसे दिन दो गीत गाए गए थे।
जन–गण–मन के बाद “रामभुज चौधरी” का हिंदी गीत गाया गया था, जो की विशेष रूप से जॉर्ज पंचम के स्वागत में प्रस्तुत था। जन–गण–मन की रचना और जॉर्ज पंचम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था। अगर कोई संबंध था तो सिर्फ इतना कि यह गीत उस मौके पर पहली बार गया गया था, जब जॉर्ज पंचम भारत आए थे ।उस समय अधिकतर भारतीय प्रेस ने भी यही रिपोर्टिंग की कि जॉर्ज पंचम का स्वागत एक बंगाली गीत से किया गया जो कि उनकी प्रशंसा में था और इस गलत रिपोर्टिंग के कारण ही जन–गण–मन को लेकर इतने भ्रांतियां व्याप्त है।
वंदे मातरम “आनंद मठ” का हिस्सा था जिसमें मुसलिमों के विरुद्ध संदेश था। जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस “वंदे मातरम” पर विचार कर रही थी तभी टैगोर ने जन–गण–मन के विवाद पर 10 नवंबर 1937 को पुलिन बिहारी सेन को पत्र लिखा। यह पत्र रविंद्र जीवनी में है। इस पत्र में उन्होंने लिखा वा स्पष्ट किया था कि यह गीत उन्होंने ईश्वर को संबोधित करते हुए लिखा था ना कि जॉर्ज पंचम को। जब उनसे जॉर्ज पंचम के स्वागत अवसर पर ऐसा गीत लिखने की पेशकश की गई थी तो वे चौंक गए थे और उन्होंने इस मौके का फायदा उठाकर ऐसा गीत जो बताएं कि भारत का भाग्य विधाता अंग्रेज नहीं बल्कि ईश्वर है लेकिन इस पत्र के बाद भी विवाद की स्थिति बनी रही तो इस विवाद में उन्होंने बहुत आहत होकर किया था तब उन्होंने कहा था कि, “यह सुनकर कि मैंने जॉर्ज पंचम के स्वागत गान के रूप में इस गीत की रचना की है।” मुझे आश्चर्य तो हुआ ही मन में रोष का भी संचार हुआ “शाश्वत मानव इतिहास के युग युग धाबित पथिकों के चिर सारथी” कहकर मैं किसी चतुर्थ या पंचम जज की स्तुति कर सकता हूं? इस प्रकार की निकृष्ट मूढ़ता मेरे मन में होने का जिन्हें जरा भी संदेह भी हो सकता है, वैसे लोगों को उत्तर देने में भी “मैं अपना अपमान मानता हूं।“
ऐतिहासिक राष्ट्रध्वज कहां है?
# 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद के समक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रध्वज के पारित प्रस्ताव के साथ दो राष्ट्रध्वज जिनमें एक खादी का तथा एक खादी सिल्क का ध्वज प्रस्तुत किया था।
# 14 अगस्त 1947 को हंसा बेन मेहता ने डा. राजेन्द्र प्रसाद को भारत की समस्त नारियों की ओर से राष्ट्र को उपहार स्वरूप इस सिल्क के ध्वज को सौप था।
# 15 अगस्त 1947 को सेंट्रल हॉल में 21 तोपों की सलामी के बीच सुबह 10:30 बजे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वही खादी सिल्क का राष्ट्रध्वज फहराया था।
# 16 अगस्त 1947 को वही सिल्क का ध्वज 8:30 बजे लाल किले की प्राचीर पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस की आकांक्षा अनुरूप ध्वजारोहण किया। # लाल किले पर ध्वजारोहण के बाद शाम को रिट्रीट(ध्वजा उतारने की कार्यवाही) के बाद वह ऐतिहासिक राष्ट्रध्वज कहां रखा गया किसी को पता नहीं है।
# उक्त ऐतिहासिक राष्ट्रध्वज कहां है? किसी को भी नहीं पता।
# उस राष्ट्रध्वज की तलाश जब की गई तो संबंधित विभागों के प्रमुखों से चर्चा की गई जो जानकारी मिली वह निम्नानुसार है –
# राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व महानिदेशक श्री आई.डी. माथुर ने बताया कि,” जहां तक उनकी जानकारी है वह कह सकते हैं कि जिस झंडे को सर्वप्रथम पंडित नेहरू ने फहराया था वह राष्ट्रीय संग्रहालय में नहीं है। वह इस बात को स्वीकारते हैं कि इस झंडे का एक ऐतिहासिक महत्व है और ऐसी बहुत सी वस्तुओं को राष्ट्रीय संग्रहालय जैसे संस्थान में होना चाहिए।“
# श्री माथुर का कहना है कि, “राष्ट्रीय ध्वज की पवित्रता और महत्व को देखते हुए इसके बारे में दो मत नहीं हो सकते। वर्षों दशकों के संघर्ष और बलिदान के बाद यह तिरंगा फहराया गया था। इसलिए सरकार को पता लगाना चाहिए कि यह झंडा कहां है? आखिर इसी झंडे के लिए हजारों लोगों ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी।” # राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व महानिदेशक के अनुसार यह झंडा भारत सरकार के पास होना चाहिए भले ही यह विदेशी मामलों के मंत्रालय के तोशखाने में रखा हो अथवा राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में रखा होगा।
# इस विचार पर विदेशी मामलों के मंत्रालय में संयुक्त सचिव (प्रशासन) श्री एस.एम. गवई का कहना है कि, “यह झंडा तोशखाने में नहीं होगा क्योंकि हम वहां केवल विदेशों से मिले उपहार ही रखते हैं। इसलिए झंडा या तो राष्ट्रीय अभिलेखागार में होगा अथवा राष्ट्रीय संग्रहालय में यह इन्हीं जगहों पर हो सकता है और यह निश्चित है कि झंडा हमारे पास तो नहीं है।
# राष्ट्रीय संग्रहालय में झंडा होने की संभावना के बारे में संग्रहालय के कीपर श्री गणपत्ये का कहना है कि, “राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में केवल दो झंड़े हैं जिन्हें तेनजिंग और हिलेरी ने एवरेस्ट के ऊपर फहराया था। वह ध्वज नहीं है जिसे 1947 में पंडित नेहरू ने 16 अगस्त 1947 को लाल किले पर फहराया था। इस बारे में उन्होंने सीपीडब्ल्यूडी यानि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग से पूछने की बात कही जो कि इस तरह के सभी समारोह आयोजित करता है। लेकिन तब 1947 में सीपीडब्लूडी अस्तित्व में नहीं था।
# रक्षा मंत्रालय के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर (सेरेमोनियल) श्री ए. के. मिश्रा का उत्तर सारी जिज्ञासाओं का अंत कर देता है। उनके अनुसार तिरंगा जी.ओ.सी. दिल्ली के पास सुरक्षित हैँ लेकिन वहां के अधिकारी कहते हैं कि वहां अभिलेखागार नहीं है।
सहारा समय मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ टीवी चैनल है उसके द्वारा 15 अगस्त 2004 को एक प्रोग्राम प्रसारित किया गया था। रिपोर्टर श्री वत्सल श्रीवास्तव द्वारा “तिरंगे की खोज” कार्यक्रम के अंतर्गत बताया–
अ. नेहरू मेमोरियल की श्रीमती त्रिपत कुमार ने कहा “वह झंडा नहीं है वैसे यह मेमोरियल 1964 को खोला गया है। डॉ राधाकृष्णन ने उद्घाटन किया था।
ब. गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कैमरे का सामना नहीं किया। नियम कायदे का हवाला देकर जवाब देने से बचे।
स. राष्ट्रीय अभिलेखाकर के डी.जी. यानि महानिदेशक श्री शीतला सहाय प्रसाद ने कहा कि, “हमारे यहां प्राइवेट पेपर है, झंडा नहीं है।” आखिर वह ऐतिहासिक राज ध्वज है कहां?
राष्ट्रध्वज की अपील
मेरे प्यारे भारतवासियों,
मैं आपका वही प्यारा तिरंगा हूं, जिसने आपके दिलों में देशभक्ति का जज्बा जगाया है। आज मैं आपसे अपने इतिहास और संघर्ष की एक खास बात साझा करना चाहता हूं।
22 जुलाई 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में मेरे दो स्वरूप—सूती खादी और खादी सिल्क—प्रस्तुत किए थे। उसी दिन मुझे भारत का आधिकारिक राष्ट्रध्वज घोषित किया गया।
14 अगस्त 1947 की रात, जब आजादी का सूरज उगने वाला था, श्रीमती हंसा बेन मेहता ने मुझे तत्कालीन संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सौंपा।
15 अगस्त 1947 की ऐतिहासिक सुबह, मुझे सेंट्रल हॉल में 21 तोपों की सलामी के बीच पहली बार फहराया गया। और फिर 16 अगस्त 1947 को, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मुझे लाल किले की प्राचीर पर फहराया, जिससे मेरे उस स्वरूप को अमर कर दिया गया।
पर अफसोस! समय बीतने के साथ मेरे ऐतिहासिक स्वरूप को शाम को रिट्रीट के कहीं रख कर भुला दिया गया। दशकों तक किसी ने मेरे उस स्वरूप को याद नहीं किया। मैंने सोचा, क्या मेरा वह ऐतिहासिक स्वरूप हमेशा के लिए खो गया है?
लेकिन 45 साल बाद, मेरे खोए हुए स्वरूप को खोज लिया गया। मेरा ऐतिहासिक स्वरूप अब आर्मी बैटल ऑनर्स मैस (ABHA), चाणक्यपुरी, दिल्ली में सुरक्षित है। यह 8×12 फीट का है और इसे पहले दिल्ली राजस्थान सब एरिया मैस में रखा गया था।
अब आप मेरे इस ऐतिहासिक स्वरूप को निहार सकते हैं और गर्व अनुभव कर सकते हैं। मैं आपकी प्रेरणा हूं, आपका सम्मान हूं, और आपकी हर सांस में बसा हूं। मेरी कहानी, मेरा इतिहास, और मेरा महत्व आपको सदैव देश की सेवा के लिए प्रेरित करेगा।
आपका अपना,
प्यारा तिरंगा – राष्ट्रध्वज
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