झंडा आंदोलन 1923 जबलपुर
राष्ट्रीय झंडे के इतिहास में सन् 1923 अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष रहा। नागरिक अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए हकीम अज़मल खान की अध्यक्षता में अवज्ञा जांच समिति नियुक्त की गई थी हकीम अज़मल खान के अतिरिक्त मोतीलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सी. राजगोपालाचारी, जमनालाल बजाज, सेठ छोटानी एवं डॉक्टर एम. ए. अंसारी इस समिति के सदस्य थे। इस समिति ने पूरे देश का दौरा किया था।
यह दल 10 जुलाई 1922 को जब जबलपुर पहुंचा तब उनका नागरिक अभिनंदन किया गया एवं टाउन हॉल पर “स्वराज ध्वज (चरखा ध्वज) फहराया गया था। सार्वजनिक स्थान पर झंडा रोहण एवं नागरिक अभिनंदन किया जाने से इंग्लैंड में खलबली मच गई। कर्नल येट ने हाउस ऑफ कॉमंस में यह मामला उठाया और पूछा जबलपुर नगर पालिका ने क्रांतिकारी झंडा है वहां कैसे लग गया? तब ब्रिटिश भारत सरकार ने इसकी पुनरावृत्ति न होने का आश्वासन दिया।
राजा जी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, सेठ जमनालाल बजाज आदि का एक शिष्ट मंडल जो को 11 मार्च 1923 को जबलपुर आना था। जबलपुर नगर पालिका के सदस्यों ने डिप्टी कमिश्नर से शिष्ट मंडल के सम्मान में नगर पालिका भवन पर (जो विक्टोरिया हॉस्पिटल के बाजू में है) स्वराज झंडा फहराने की अनुमति मांगी जो नहीं दी गई। तब यह तो प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। परिणामत: सारे देश में एक तूफान खड़ा हो गया।
जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर ने नागरिक समारोह रोकने के लिए 11 मार्च 1923 को टाउन हॉल (नगर पालिका भवन) पर डेरा डाल दिया। कांग्रेस ने तिलक भूमि में स्वागत समारोह का आयोजन कर लिया। राजा जी और डॉक्ट राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रीय झंडे की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए लोगों का आवाहन किया।
सेंट्रल प्रोविजंस कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पंडित सुंदरलाल ने शिष्ट मंडल को आस्वस्त किया कि,” सेंट्रल प्रोविजंस की जनता राष्ट्रीय झंडे की प्रतिष्ठा के लिए हर प्रकार के त्याग के लिए तैयार रहेगी। उन्होंने घोषणा की कि, “2000 सत्याग्रही की भारती, रुपए 5000 का एकत्रीकरण एवं जब तक 500 चरखे चलाना शुरु नहीं होते तब तक में उपवास रखेंगे।”
स्थानीय कांग्रेसी/जबलपुर के नागरिक तत्काल उनके प्रतिज्ञा पूरी करने का प्रबंध करने लगे। पूरे जबलपुर में खलबली मच गई इस प्रकार जबलपुर से “झंडा सत्याग्रह” की शुरुआत हो गई। भारतियों को झंडे की शक्ति का एहसास हो गया। रोचक घटनाक्रम
18 मार्च 1922 को गांधी जी को “यंग इंडिया” पत्रिका में राजद्रोहात्मक (अंग्रेजों की नजर में) लेखन के फलस्वरुप 6 वर्ष कारावास की सजा दी गई। उसके 1 वर्ष पूर्ण होने पर 18 मार्च 1923 को जबलपुर वासियों ने तिलक भूमि से ओमती पुल के रास्ते सिविल लाइन तक एक बड़ा जुलूस निकाला। जुलूस को ओमती पुल क्लॉक टावर पर सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट ने रोक लिया और कुछ शर्तों पर अनुमति देने को तत्पर था।
पंडित सुंदरलाल जैन ने कहा जुलूस में 10 लोग रहेंगे, दसों व्यक्ति मुंह पर कपड़ा बांध लेंगे लेकिन तिरंगा अवश्य रहेगा। अंत में उन्होंने कहा “भले ही एक व्यक्ति मुंह पर कपड़ा बांधकर जाए पर उसके साथ तिरंगा तो रहेगा।”
जब पंडित सुंदरलाल जैन और सहायक पुलिस सुपरिंटेंडेंट के मध्य वार्तालाप चल रहा था तभी उस्ताद प्रेमचंद अपने तीन साथियों सीताराम जाधव, परमानंद जैन और खुशाल चंद्र जैन के साथ पुलिस की घेराबंदी तोड़कर टाऊनहाल पहुंचे जो विक्टोरिया स्थल के प्रांगण में था और टाउन हॉल के ऊपरी गुम्बद पर स्वराज ध्वज फहरा दिया। चारों को गिरफ्तार कर झंडा जप्त कर लिया गया।
उधर जब पंडित सुंदरलाल जैन को सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट में अनुमति नहीं दी तो उन्होंने कहा कि, ” मैं अपने विवेकानुसार तथा राष्ट्रीय झंडे के सम्मान के अनुरूप कोई भी कार्य करने का अपना अधिकार सुरक्षित रखता हूं जैसा कि मैं उनको(ASP) बता दिया है, यह राष्ट्रीय झंडा विद्रोह का नहीं शांति और प्रेम का झंडा है।”
इस प्रकार झंडा आंदोलन जबलपुर से प्रारंभ हुआ जो बाद में पंडित सुंदरलाल जैन को 6 माह की कैद होने से उन्होंने अपना उत्तराधिकारी महात्मा भगवानदीन को नामित कर दिया। मार्गदर्शक भगवानदीन ने आंदोलन जबलपुर से नागपुर स्थानांतरित कर दिया।
Tricolour hoisted by Nehru at Red Fort in 1947 to get fresh lease of life
Updated: 21st Feb, 2022 at 10:13 AM
The historic tricolour had been kept at Army Battle Honours Mess (ABHM) in Chanakyapuri. The flag framed in a box covered with glass was handed over to the lab on Thursday. – Parvez Sultan
NEW DELHI: The Conservation Laboratory of the National Museum, which has helped in conservation of precious cultural heritages like paintings on the ceilings of Rashtrapati Bhawan, has another momentous task at hand — restoration and preservation of the National Flag hoisted from the ramparts of Red Fort on August 16, 1947.
The historic tricolour had been kept at Army Battle Honours Mess (ABHM) in Chanakyapuri. The flag framed in a box covered with glass was handed over to the lab on Thursday. According to people privy to the matter, preliminary assessment suggests the flag is in good condition but requires antifungal and anti-insect treatment to enhance its lifespan.
“The flag was with a battalion however it had remained untraceable for about 45 years. We don’t have much information about the transfer of this national treasure (flag) to the Army. The authorities had been looking for an appropriate agency for its restoration for a long time. After a retired military officer suggested, they approached the National Museum to take up the task,” said an official.
Lt Cdr KV Singh in his book ‘The Indian Tricolour’ has also mentioned that the flag unfurled by Nehru at Red Fort was shifted to the ABHM. The tricolour in possession of the Archaeological Survey of India at Fort St George Museum in Chennai is known as the oldest surviving Indian national flag. It was hoisted at Fort St George in Chennai on August 15, 1947.
The tricolour was visited at 8 30 am at the Red Fort and the battalion 7 Sikh Light Infantry was incharged for the ceremony.
The officials said after the event, the flag was given to the battalion however it had remained untraceable for about 45 years.
“Presumably, it must have been in the custody of the former Delhi and Rajasthan Sub-Area Mess all these past years,” read the book.
Lt Cdr Singh wrote in the book that when the issue was highlighted in 2002, it was discovered in the Officer’s Mess headquarters Delhi Area in Delhi Cantonment.
Then the flag changed hands and finally reached the ABHM.
The flag being mended by the National Museum laboratory is made from cotton and its dimension is 12 feet by 8 feet. “It seems that the blue chakra in the middle is hand-painted. Textile division will check for any damages to the fabric after which we give it antifungal and anti-insect treatment. Its restoration assumes significance as the country is celebrating 75 years of independence,” said the official.
1947 में लाल किले पर नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा नए जीवन के लिए होगा संरक्षित
अपडेट: 21 फरवरी, 2022, सुबह 10:13 बजे
ऐतिहासिक तिरंगा चाणक्यपुरी स्थित आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में रखा गया था। यह झंडा एक कांच से ढके बॉक्स में फ्रेम किया हुआ था, जिसे गुरुवार को प्रयोगशाला को सौंप दिया गया। – परवेज सुल्तान
नई दिल्ली: नेशनल म्यूजियम की कंजर्वेशन लैबोरेटरी, जिसने राष्ट्रपति भवन की छत पर बनी पेंटिंग्स जैसे अमूल्य सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण में मदद की है, अब एक और ऐतिहासिक कार्य कर रही है — 16 अगस्त 1947 को लाल किले की प्राचीर से फहराए गए राष्ट्रीय ध्वज के संरक्षण और पुनर्स्थापन का काम।
यह ऐतिहासिक तिरंगा पहले चाणक्यपुरी स्थित आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में रखा गया था। यह झंडा एक कांच से ढके बॉक्स में फ्रेम किया हुआ था, जिसे गुरुवार को लैब को सौंपा गया। मामले से परिचित लोगों के अनुसार, प्रारंभिक जांच में पता चला है कि झंडा अच्छी स्थिति में है, लेकिन इसकी आयु बढ़ाने के लिए इसे एंटीफंगल और एंटी-इंसेक्ट उपचार की आवश्यकता है।
एक अधिकारी ने बताया, “यह झंडा एक बटालियन के पास था, लेकिन लगभग 45 वर्षों तक इसका कोई पता नहीं चला। हमें इस राष्ट्रीय धरोहर (झंडे) के सेना तक पहुंचने के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। लंबे समय से इसके संरक्षण के लिए उपयुक्त एजेंसी की तलाश हो रही थी। एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी की सिफारिश पर नेशनल म्यूजियम से संपर्क किया गया और यह काम सौंपा गया।”
लेफ्टिनेंट कमांडर केवी सिंह ने अपनी पुस्तक ‘द इंडियन ट्राइकलर’ में भी उल्लेख किया है कि नेहरू द्वारा लाल किले पर फहराया गया झंडा बाद में ABHM में स्थानांतरित कर दिया गया था। फोर्ट सेंट जॉर्ज म्यूजियम, चेन्नई में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के पास जो तिरंगा है, उसे अब तक का सबसे पुराना भारतीय राष्ट्रीय ध्वज माना जाता है। इसे 15 अगस्त 1947 को चेन्नई के फोर्ट सेंट जॉर्ज में फहराया गया था।
तिरंगा सुबह 8:30 बजे लाल किले पर फहराया गया था, और इस समारोह की जिम्मेदारी 7 सिख लाइट इन्फैंट्री बटालियन को सौंपी गई थी।
अधिकारियों ने बताया कि इस कार्यक्रम के बाद झंडा बटालियन को सौंप दिया गया, लेकिन लगभग 45 वर्षों तक इसका कोई पता नहीं चला।
पुस्तक में लिखा गया है, “संभवतः यह झंडा इन सभी वर्षों के दौरान पूर्व दिल्ली और राजस्थान सब-एरिया मेस की कस्टडी में रहा होगा।”
लेफ्टिनेंट कमांडर सिंह ने अपनी पुस्तक में लिखा कि जब यह मामला 2002 में उजागर हुआ, तो यह झंडा दिल्ली छावनी के ऑफिसर्स मेस मुख्यालय में पाया गया।
इसके बाद यह झंडा कई स्थानों पर गया और अंततः आर्मी बैटल ऑनर्स मेस (ABHM) में पहुंचा।
नेशनल म्यूजियम की प्रयोगशाला में संरक्षित किया जा रहा यह झंडा सूती कपड़े से बना है और इसका आकार 12 फीट गुणा 8 फीट है। एक अधिकारी ने बताया, “ऐसा लगता है कि बीच में बना नीला चक्र हाथ से पेंट किया गया है। कपड़ा विभाग झंडे की संरचना की किसी भी क्षति की जांच करेगा, इसके बाद इसे एंटीफंगल और एंटी-इंसेक्ट उपचार दिया जाएगा। इसका संरक्षण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि देश 75 वर्षों की स्वतंत्रता का जश्न मना रहा है।”
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वर्तमान राष्ट्रध्वज तिरंगे की उत्पत्ति
भारतीय तिरंगे की डिजाइन का श्रेय काफी हद तक एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी पिंगले वेंकैया को दिया जाता है, जो कथित तौर पर दूसरे एंग्लो-बोअर युद्ध (1899-1902) के दौरान दक्षिण भारतीय सेना के हिस्से के रूप में वहां तैनात थे।
राष्ट्रीय ध्वज को डिजाइन करने में वर्षों का शोध चला। 1916 में उन्होंने भारतीय झंडों के संभावित डिजाइनों वाली एक पुस्तक भी प्रकाशित की। 1921 में बेजवाड़ा(वर्तमान में विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में, वेंकैया ने फिर से गांधी से मुलाकात की और ध्वज के मूल डिजाइन का प्रस्ताव रखा जिसमें दो प्रमुख समुदायों हिंदूओं और मुसलमानों के प्रतीक के लिए दो लाल और हरे रंग का बैंड शामिल थे। गांधी जी ने यक़ीनन शांति और भारत में रहने वाले बाकी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक सफेद पट्टी और देश की प्रगति का प्रतीक चरखा जोड़ने का सुझाव दिया।
एक दशक बाद तक कई बदलाव होते रहे, जब 1931 में कराची में कांग्रेस का बेटी की बैठक हुई और तिरंगे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया तिरंगे को अपनाया गया। लाल को केसरिया से बदल दिया गया और रंगों का क्रम बदल दिया गया। झंडे की कोई धार्मिक व्याख्या नहीं होनी चाहिए थी। स्वतंत्र भारत के लिए एक झंडा
स्वतंत्र भारत का ध्वज बनने के लिए चरखा ध्वज तिरंगे को बदल दिया गया था। प्रस्तावित तिरंगा के शीर्ष पर केसरिया “ताकत और साहस” का प्रतीक है, बीच में सफेद “शांति और सच्चाई” का प्रतिनिधित्व करता है और नीचे हरा रंग “भूमि की उर्वरता, विकास और शुभता” का प्रतीक है। ध्वज पर प्रतीक के रूप में 24 तीलियों वाले अशोक चक्र ने चरखा को बदल दिया। इसका उद्देश्य यह दिखाना है कि,” गति में जीवन और ठहराव में मृत्यु है।” इसके निर्माता के बारे में विवाद
2013 में एक विवाद तब पैदा हुआ जब इतिहासकार पांडुरंगा रेड्डी ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज हैदराबाद में जन्मे सुरैया तैयब जी द्वारा डिजायन किया गया था। संविधान सभा में बिना किसी नाम के प्रस्ताव के साथ, आरोप तर्क के लिए खुले हैं। हालांकि इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि 1947 में चरखे से अशोक चक्र में बदलाव की सिफारिश किसने की थी। 2018 में ” हाऊ दा तिरंगा और शेर प्रतीक वास्तव में आया” शीर्षक से एक लेख में शिल्प एनजीओ दस्तकार संस्था की संस्थापक सदस्य लैला तैयब जी ने बदलाव का सुझाव दिया था।
उद्योगपति और कांग्रेस के राजनेता नवीन जिंदल द्वारा गठित एक गैर लाभकारी संगठन, ” फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया” की वेबसाइट कहती है “श्रीमती सुरैया बदरुद्दीन तैयबी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रध्वज के
डिजाइन को आखिरकार मंजूरी दे दी गई और 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा स्वीकार कर लिया गया। वह एक प्रतिष्ठित कलाकार थी और उनके पति बीएचएफ टीबजी(आईसीएस) उस समय संविधान सभा के सचिवालय में उपसचिव थे।
वेंकैया जिनका 1963 में निधन हो गया, को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान के लिए मरणोपरांत 2009 में एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया। 2014 में उनका नाम भारत रत्न के लिए भी प्रस्तावित किया गया था।
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कुछ तथ्य अनूठे तिरंगा # लाल किले पर पहली बार 16 अगस्त 1947 को झंडा फहराया गया।
# राष्ट्रीय झंडे को सलामी देने की परंपरा 15 अगस्त 1947 को शुरू हुई।
# लाल किले का असली नाम क़िला-ए-मुबारक है।
# आजादी की पहली सुबह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजाई थी।
# आजाद भारत में 14-15 अगस्त 1947 को आधी रात तिरंगा लहराया गया था।
# तब काउंसिल हाउस के ऊपर तिरंगा फहराया गया था। जिसे आज संसद भवन के रूप में जाना जाता है।
# 14 अगस्त 1947 की शाम को ही वायसराय हाउस में यूनियन जैक होता लिया गया था।
# वायसराय हाउस राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना है।
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कुछ ऐसी थी दिल्ली में आजादी की पहली सुबह
” 15 अगस्त 1947 का इतिहास ” भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है देश में स्वतंत्रता दिवस(Independence Day) इस बार न सिर्फ और ज्यादा खास है बल्कि से लेकर देश भर में तैयारी अभी काफी खास की जा रही है। 15 अगस्त 1947 यानी जिस दिन भारत को आजादी मिली थी, इस दिन का हर भारतीय के लिए एक अलग भाव है। लेकिन इतिहास के पन्नों में दर्ज इस दिन देश में क्या हुआ था आज आपको बताएंगे- अंग्रेजों के 200 वर्षों के शासन का खात्मा और दिल्ली में लाल किले पर भारत के राष्ट्रध्वज फहराने की वह ऐतिहासिक घटना हर किसी के लिए गर्व का पल रहा है।
16 अगस्त 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौर गेट पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू का वह पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की आधी रात को राष्ट्रपति भवन तत्कालीन वायसराय हाउस में दिया था वह अभी भी लोगों की यादों में बसा है। पंडित नेहरू ने अपने पहले भाषण में कहा था कि,” कई वर्षों पहले देश के भाग्य को बदलने की कोशिश शुरू हुई थी और अब वक्त आ गया है कि देश अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें।” पंडित नेहरू ने अपने पहले संबोधन में कहा था कि,” आज रात 12:00 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी उसे वक्त भारत एक आज़ाद जीवन के साथ नई शुरुआत कर रहा होगा।”
15 अगस्त 1947 को क्या लाल किले पर समारोह हुआ? हम एक टीवी चित्र देखे हैं जिसमें यूनियन जैक को नीचे करना और जवाहरलाल नेहरू तिरंगा फराते हैं और जमा मस्जिद के सामने लाल किले में भीड़ को संबोधित करते हैं- एक आदर्श राष्ट्रवादी कोलाज बनाने के लिए एक साथ रखा गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह कथा तथ्यात्मक रूप से गलत है। 15 अगस्त 1947 को लाल किले में स्वतंत्रता दिवस समारोह नहीं हुआ था और अंग्रेजों को भारत के दुश्मन के रूप में नहीं माना जाता था। लेकिन छवि का प्रतीकवाद शक्तिशाली है क्योंकि यह हमें हमारी राजनीतिक सफलता की एक साधारण याद दिलाता है। यूनियन जैक को तिरंगे से बदलने से एक मजबूत राष्ट्रवादी धरणा का पता चलता है कि भारतीयों ने वास्तव में शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को हराया था। दूसरी ओर लाल किले पर नेहरू की आकृति भारत के पुनर्खोज में भारतीय राष्ट्रवाद की विजय का प्रतीक है।
कोई ब्रिटिश विरोधी भावना नहीं
लेकिन भारत के अंतिम वायसराय लुई माउंटबेटन की रिपोर्ट और उनकी बेटी पामेला माउंटबेटन की व्यक्तिगत यादें जैसे आधिकारिक दस्तावेज हमें 15 और 16 अगस्त 1947 को हुई घटनाओं के लिए एक बहुत ही अलग दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
लुई माउंटबेटन 14 अगस्त को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेकर कराची से वापस आए। उन्हें भारतीय नेताओं द्वारा सूचित किया गया कि वे चाहते हैं कि वह एक संक्षिप्त अवधि के लिए भारत के अंतिम गवर्नर जनरल का पद स्वीकार करें। यह प्रस्ताव औपचारिक रूप से 14 अगस्त को संविधान सभा के मध्य रात्रि सत्र के दौरान प्रस्तुत किया गया था और इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया था। इसके तुरंत बाद नेहरू ने “भाग्य के साथ” अपना प्रसिद्ध भाषण दिया और पहली बार भारतीय राष्ट्रध्वज फहराया।
(संदर्भ – माउंटबेटन पेपर्स, ब्रिटिश लाइब्रेरी,बी.एल./आई. ओ.आर.:एल./पी.ओ./6/123)
हालांकि डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने उस दिन सबसे दिलचस्प अवलोकन किया उन्होंने कहा,” जबकि हमारी उपलब्धि हमारे अपने कष्टों और बलिदानों के कारण कम मात्रा में नहीं है, यह भी है…. ब्रिटिश जाति की ऐतिहासिक परंपराओं और लोकतांत्रिक आदर्श की समाप्ति और पूर्ति….ण हमें अपने बीच में एक के रूप में खुश है उसे जाति के प्रसिद्ध बर्मा के विस्कांडर माउंटबेटन… भारत पर ब्रिटेन के प्रभुत्व की अवधि आज समाप्त हो रही है और अब ब्रिटेन के साथ हमारे संबंध समानता,पारस्परिक सदभावना और पारस्परिक लाभ के आधार पर आराम करने जा रहे हैं।” अंग्रेजों के प्रति इस सकारात्मक रवैया को अंग्रेजों और भारतीय अभिजात वर्ग के बीच एक समझौते के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अंग्रेजों का एक यादगार विदाई दी जानी चाहिए। यह भारतीय नेताओं के बीच एक लोकप्रिय भावना थी। पामेला माउंटबेटन की 15 अगस्त 1947 की डायरी प्रविष्टि इस पहलू को पकड़ती है। वह लिखती है,”समारोह के बाद(विधानसभा भवन में)वे कुछ समय के लिए दरवाजों से बाहर नहीं निकल सकी क्योंकि भीड़ अभी इतनी घनी थी। उन्होंने ताली बजाई और चिल्लाईं… पंड़ित माउंटबेटन की जय,
लेडी माउंटबेटन की जय
(पामेला माउंटबेटन, इंडिया रिमेम्बर्ड,लंदन:पवेलियन पृष्ठ 143)
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बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई की धुन से किया स्वागत
वहीं 15 अगस्त 1947 को आजादी की पहली सुबह की शुरुआत बिस्मिल्लाह खान शहनाई की धुन से की थी। पंडित नेहरू ने इच्छा जताई थी इस मौके पर बिस्मिल्लाह खान शहनाई वादन करें। इसके बाद आजादी की पूर्व संध्या पर ढूंढ कर बुलावा भेजा गया। जिसके बाद बिस्मिल्लाह खान और उनके साथियों ने राग काफी बजाकर आजादी की सुबह का संगीतमय स्वागत किया था। इसके बाद पंडित नेहरू ने ध्वजारोहण किया था।
देश आजादी की 75 वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है देशभर में जस्टिस की तैयारी चल रही है।
आजादी की पहली सुबह पर भी देश में भारी उत्साह का माहौल था और उसे वक्त भी हजारों की भीड़ लाल किले पर जश्न मनाने के लिए जुटी थी।
समारोह
बड़े दिन की शुरुआत वायसराय हाउस जिसे बाद में राष्ट्रपति भवन का नाम दिया गया, के दरबार हाल में माउंटबेटन के शपथ ग्रहण समारोह से हुई। इस संक्षिप्त आयोजन के बाद नवनियुक्त गवर्नर जनरल ने नेहरू जी व साथियों को शपथ दिलाई। सिल्क के ध्वज को सेंट्रल हॉल में 8:30 बजे 21 तोपों की सलामी के साथ फहराया गया फिर नवनियुक्त गवर्नर जनरल माउंटबेटन व भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू लगभग 5000 बच्चों और उनके माता-पिता से मिलने गए जो पुरानी दिल्ली के रोशन आरा बाग में एकत्रित हुए थे।
हालांकि भावनाएं बहुत अधिक चल रही थी,भारतीय नेताओं द्वारा नियोजित समारोह बहुत गंभीर था। मेन इवेंट का आयोजन इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में होना था। शुरू में यह तय किया गया की यूनियन जैक को उतारा जाएगा और प्रधानमंत्री तिरंगा फहराएंगे। इसके बाद एक छोटी परेड होनी थी। हालांकि अंतिम समय में कार्यक्रम में बदलाव किया गया।
“माउंटबेटन ने जो कुछ हुआ उसका विस्तृत विवरण दिया है।”
उन्होंने उल्लेख किया- “शाम 6:00 बजे दिन का महान आयोजन होना था, नए डोमिनियन ध्वज की सलामी। इस कार्यक्रम में मूल रूप से यूनियन जैक को औपचारिक रूप से कम करना शामिल था, लेकिन जब मैंने नेहरू के साथ इस पर चर्चा की तो वह पूरी तरह सहमत थे कि यह एक ऐसा दिन था जब वह चाहते थे कि हर कोई खुश रहे और अगर किसी तरह से यूनियन जैक को कम करने से ब्रिटिश संवेदनशीलता को ठेस पहुंची तो उन्हें निश्चित रूप से देखेंगे कि ऐसा न हो।
(संदर्भ- माउंटबेटन पेपर्स ब्रिटिश लायब्रेरी, बी.एल./आईओआर:एल/पीओ/6/123)
ऐसा लगता है कि यूनियन जैक किसी के लिए बिलकुल भी मुद्दा नहीं था बल्कि आयुष को भीड़ की ज्यादा चिंता थी। पामेला माउंटबेटन ने अपनी डायरी में उल्लेख किया है कि ग्रैंड स्टैंड लोगों के समुद्र के नीचे दबे हुए थे और परेड का एकमात्र संकेत प्रिंसेस पार्क के केंद्र में कहीं उज्जवल पगड़ी की एक पंक्ति थी। नेहरू और माउंटबेटन के लिए समारोह के लिए मंच तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया था। अंत में नेहरू मंच पर पहुंचे उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फसहराया इसके बाद राष्ट्रगान गाया गया और 21 तोपों की सलामी दी गई।
लाल किले में नेहरू
अगले दिन 16 अगस्त की सुबह 8:00 बजे फिर से तिरंगा फहराया। इस बार स्थल ऐतिहासिक लाल किला था। नेहरू ने तब पहला स्वतंत्रता दिवस भाषण दिया जिस पर उन्होंने खुद को भारत का प्रथम सेवक कहा।
भारत की स्वतंत्रता के आसपास की घटनाओं में यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने प्रतिक्रियावादी घटना के रूप में अंतिम परिणाम की परिकल्पना नहीं की थी। वह स्पष्ट थे की औपनिवेशिक शासन का मतलब पूरी तरह से ब्रिटिश जाति द्वारा शासन नहीं था। उन्होंने अपने संघर्ष से नस्लीय और धार्मिक कारकों को अलग रखते हुए ब्रिटिश व्यवस्था का विरोध किया लेकिन ब्रिटिश लोगों का नहीं।
एक उम्मीद है कि भारत गैर-प्रतिक्रिया आबादी मानवीय और विनम्र राष्ट्रवाद की हमारी विरासत को पुन: प्राप्त करने में सक्षम होगा।
(संदर्भ-लेखक सीएसडीएस में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और नई किताब सियासी मुस्लिम : ए स्टोरी आफ पालिटिकल इस्लाम्स इन इंडिया के लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं)
भारतीय ध्वज संहिता (फ्लेग कोड आफ इंडिया 2022 के अनुसार राष्ट्रध्वज मानक राष्ट्रध्वज 9 प्रकार के हैं –
1. इसमें सबसे छोटा 6 बाय 4 इंच का है, जो मीटिंग व कॉन्फ्रेंस आदि में टेबल फ्लैग के रूप में इस्तेमाल होता है
2. वीआईपी की कारों में 9 बाय 6 इंच के ध्वज जो दोहरी परत के होते हैं लगाये जाते हैं।
3. राष्ट्रपति के,वीआईपी एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए 18 बाय 12 इंच के दोहरी परत वाले ध्वज होते हैं।
4. कमरों में क्रास बार के रूप में या अपने मकान/संस्थान पर लगाने वाले झंडे 3 बाय 2 फुट के होते हैं।
5. बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग पर लगने वाले झंडे साडे 5.5 बाय 3 फुट के होते हैं।
6. शहीद सैनिकों के शवों,विशिष्ट व्यक्तियों के ,शवों और छोटे सरकारी भवनों के लिए 6 बाय 4 फुट के ध्वज अधिकृत है।
7.संसद भवन और मीडियम साइज के सरकारी भवनों पर 9 बाय 6 फुट की ध्वजा लगते हैं।
8. गन कैरिएज, लाल किला, राष्ट्रपति भवन के लिए 12 बाय 8 फुट का ध्वज अधिकृत है।
9. सबसे बड़ा तिरंगा 21 बाय 14 फुट का होता है जो बहुत बड़ी बिल्डिंग पर लगाया जाता है। आपको बताऊं 26 जनवरी 2010 तक इस साइज का ध्वज कहीं भी फहराया नहीं गया था कारण तब इतने बड़े ध्वज दंड नहीं होते थे।
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