1904 में बोद्ध गया गईं थीं वहां उनके मन में विचार आया कि भारत के लिए एक राष्ट्रध्वज चाहिए तब उन्होंने एक काले कपड़े के ऊपर प्रतीक चिन्ह लगाए और इस ध्वज के नमूने को वहां मौजूद कविवर रविंद्र नाथ टैगोर और डॉक्टर जगदीशचन्द्र बसु को दिखाए जैसा कि काला रंग भारत में बुराई का प्रतीक है यही बात कहते हुए रविंद्र नाथ टैगोर ने निवेदिता को समझाया कि यह ध्वज भारतवासी स्वीकार नहीं करेंगे, कोई दूसरा ध्वज बनाओ तब 1905 में गुलाम भारत के इतिहास का पहला राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया।
यह ध्वज वर्गाकार था लाल रंग का था और उसके बीच में इंद्र का अस्त्र वज्र था जिसके दोनों तरफ बांग्ला भाषा में वंदे मातरम लिखा हुआ था और ध्वज की चतुर सीमा पर 108 वंदनवार या ज्योतियां अंकित थी, जिनका रंग पीला था। लाल रंग संघर्ष का प्रतीक और पीला रंग संघर्ष पर विजय का प्रतीक बना और इस तरह यह ध्वज अस्तित्व में आया। (1905 का ध्वज लगेगा)
1905 में ही गृह सचिव हर्बर्ट रिसले जो कमेटी का अध्यक्ष था उसने भाषा व धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया तब वहां के हिंदू मुस्लिम नागरिकों ने इस बंगाल विभाजन का विरोध शुरू कर दिया।
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