राष्ट्रध्वज तिरंगा इस संबंध में जानकारी निम्न अनुसार है –
मैं अगर बात कर बात करूं कि अतीत के भारत का कोई एक राष्ट्रध्वज नहीं था कारण अतीत का भारत एक भूखंड का नाम था जिसमें बहुत राजे राजवाड़े जमीदार हुआ करते थे और उन सब के अपने–अपने राज्य चिन्ह और धर्म चिन्ह हुआ करते थे इसलिए अतीत के भारत का कोई एक राष्ट्रध्वज नहीं था।
आपको मैं ले चलता हूं 24 अगस्त सन 1600 में जब गुजरात प्रांत के सूरत नगर में कैप्टन हॉकिंस के नेतृत्व में अंग्रेजों का व्यापारी दल के रूप में उतरा। उनके हाथ में यूनियन था (यूनियन जैक ध्वस्त लगेगा)। हमने पहली बार यूनियन जैक को देखा था और यह माना कि यह व्यापारी कपड़े का झंडा लेकर आए हैं तो क्या फर्क पड़ता है मगर सच यह था कि वह अपने राष्ट्र की शक्ति को अपने ध्वज के साथ लेकर आए थे और हमें गुलाम बना लिया। तब हमें एहसास हुआ कि राष्ट्रध्वज की शक्ति क्या होती है चलिए इस तरह से हम गुलाम बने जो 200वर्षों तक रहे 1857 में जब हमें लगा कि अब हमें आजाद होना चाहिए तब हम बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में इकट्ठे हुए। भारत में तब समय 565 रियासतें थी।
सभी को कमल का फूल और रोटी भेज कर उन्हें एक गोपनीय मीटिंग के लिए आमंत्रित किया (बहादुर शाह ज़फर का ध्वज) सब इकट्ठे हुए और सभी ने बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में क्रांति की शुरुआत करने के लिए सहमत हुए सब ने मिलकर क्रांति के लिए तारीख चुनी 31 मई 1857, इसी दिन सभी 565 रियासतें राजा रजवाड़े मिलकर एक साथ क्रांति छोड़ देंगे। युवा पीढ़ी को इंतजार बर्दाश्त नहीं होता युवा पीढ़ी का मंगल पांडे जो अंग्रेज फौजी का सिपाही था उसे 31 मई तक का इंतज़ार बर्दाश्त नहीं हुआ। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में उसने पहली बार एक क्रांति की चिंगारी की छोड़ी और इस तरह से 29 मार्च 1857 को ही यह आज़ादी प्राप्त करने की लड़ाई शुरू हो गई।
अब हम चलते हैं आगे 1857 से शुरु हुई आज़ादी की लड़ाई 1904 तक सफल नहीं हो पाई थी इसका कारण था की जो भी राजे राजवाड़े रियासतें इस लड़ाई में शामिल होती थीं जैसे ही उनका उद्देश्य पूरा होता वह आजादी के लड़ाई से हट जाती थीं तो आजादी कैसे मिलती?
यही चिंतन स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता के मन में चल रहा था उन्होंने महसूस किया कि राजे राजवाड़े और रियासतों की जनता का समर्पण उनके अपने राज्य के ध्वज या धर्म चिन्ह के प्रति रहेगा अन्य के प्रति नहीं। सिस्टर निवेदिता ने सोचा कि गुलाम भारत का एक ध्वज होना चाहिए जिसके नीचे सभी राजे राजवाड़े रियासतों के नागरिक उसके नीचे आएं और आजादी की लड़ाई मिलकर लड़ें।
सिस्टर निवेदिता का ध्वज 1905
1904 में बोद्ध गया गईं थीं वहां उनके मन में विचार आया कि भारत के लिए एक राष्ट्रध्वज चाहिए तब उन्होंने एक काले कपड़े के ऊपर प्रतीक चिन्ह लगाए और इस ध्वज के नमूने को वहां मौजूद कविवर रविंद्र नाथ टैगोर और डॉक्टर जगदीशचन्द्र बसु को दिखाए जैसा कि काला रंग भारत में बुराई का प्रतीक है यही बात कहते हुए रविंद्र नाथ टैगोर ने निवेदिता को समझाया कि यह ध्वज भारतवासी स्वीकार नहीं करेंगे, कोई दूसरा ध्वज बनाओ तब 1905 में गुलाम भारत के इतिहास का पहला राष्ट्रीय ध्वज अस्तित्व में आया।
यह ध्वज वर्गाकार था लाल रंग का था और उसके बीच में इंद्र का अस्त्र वज्र था जिसके दोनों तरफ बांग्ला भाषा में वंदे मातरम लिखा हुआ था और ध्वज की चतुर सीमा पर 108 वंदनवार या ज्योतियां अंकित थी, जिनका रंग पीला था। लाल रंग संघर्ष का प्रतीक और पीला रंग संघर्ष पर विजय का प्रतीक बना और इस तरह यह ध्वज अस्तित्व में आया। (1905 का ध्वज लगेगा)
1905 में ही गृह सचिव हर्बर्ट रिसले जो कमेटी का अध्यक्ष था उसने भाषा व धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया तब वहां के हिंदू मुस्लिम नागरिकों ने इस बंगाल विभाजन का विरोध शुरू कर दिया।
कलकत्ता ध्वज 1906
7 अगस्त 1906 में जब इस विरोध आंदोलन की पहली वर्षगांठ मनाई जा रही थी तब कलकत्ता के पारसी बागान में सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने भारत के इतिहास का पहला तीन रंग का ध्वज फहराया। यह ध्वज आयताकार था इसमें तीन सामान रंग की पट्टियां थी क्रमशः हरा पीला और लाल। हरे रंग की पट्टी पर आठ अधखिले कमल थे जो आठ रियासतों का प्रतीक थे पीले रंग की पट्टी पर नीले रंग से वंदे मातरम् लिखा गया था और लाल रंग की पट्टी पर एक तरफ सूरज और एक तरफ चंद अंकित था यह सांप्रदायिक सौहार्द की एक मिसाल थी कि सभी ने अपने रंग और प्रतीक चिन्ह को ध्वज में लगाए। यही ध्वज 26 दिसंबर 1906 को कांग्रेस के कलकत्ता केअधिवेशन में दादा भाई नौरोजी ने फहराया आजादी के दीवानों को यह ध्वज एकजुट करने में सफल रहा इस ध्वज के कल्पना कर से शुक्रवार मित्र और सचित्र नाथ बोस।
विशेष–बंगाल विभाजन का यह विरोध आंदोलन रंग लाया और 1911 में लार्ड हार्डिंग की अध्यक्षता वाले आयोग ने बंगाल विभाजन आदेश वापस ले लिया। (1906 का ध्वज चित्र)
मैडम भीकाजी कामा का ध्वज 1907
अब बात आती है कि भारत की आजादी और ध्वज का संदेश विदेश में किसने फैलाया? तो यह श्रेय जाता है मैडम भीकाजी कामा को। 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टूटगार्ड में जब वे एक सभा को संबोधित कर रही थी तब अचानक उन्होंने अपने साड़ी में छुपे एक कपड़े को बाहर निकाल हवा में लहराया और घोषणा की मेरे देश भारत के झंडे में जन्म ले लिया है।
यह झंडा कोलकाता ध्वज से मिलता जुलता था जिस तरह से कोलकाता ध्वज में आयताकार तीन रंग की पट्टियां थीं वैसे ही तीन पट्टियां मैडम कामा के ध्वज में थी। फर्क आया तो प्रतीक चिन्हों में, कोलकाता ध्वज में में हरे रंग की पट्टी पर आठ अधखिले कमल थे जो इस ध्वज में वह कमल खिले हुए हैं।
पीले रंग की पट्टी पर सफेद रंग से वंदेमातरं “र” पर अनुस्वार बिंदी के साथ अंकित हुआ और लाल रंग की पट्टी पर यथावत सूरज और चांद अंकित थे। इस ध्वज के कल्पनाकर थे श्यामजी कृष्ण वर्मा व हेमचंद्र दास। जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि 1906 और 1907 के ध्वज जो में दिख रहा है और डीएवीपी का पोस्टर ध्वज जिसमें रंगों का क्रम भी अलग था प्रतीक चिन्ह भी अलग थे I (पोस्टर)
जिसकी पुष्टि मैंने पुणे जाकर की और मैडम भीखा जी काम का वह ऐतिहासिक ध्वज जिसे गुजरात के समाजवादी नेता इंदूलाल याग्निक लेकर भारत आए थे और जिसे उन्होंने पुणे के तिलकवाड़ा म्यूजियम में रख दिया जो आज भी वहां सुरक्षित है और उसमें रंगों का क्रम और प्रतीक चिन्ह वही बताए गए हैं जो ध्वज में आप देख रहे हैं। (मैडम कामा का ध्वज चित्र)
होम रूल लीग ध्वज 1917
आपको बताना चाहूंगा की डॉक्टर एनी बेशेंट और लोकमान्य तिलक द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होमरूल लीग का गठन 1916 में किया गया और 1917 में उन्होंने एक ध्वज भी प्रस्तुत किया यह ध्वज आयताकार था जिसमें चार हरे रंग की पट्टियां थी और पांच लाल रंग की पट्टियां थी। ध्वज में सप्त ऋषि और चांद तारे भी थे तथा ध्वजदंड के ऊपरी वाले हिस्से के कोने में यूनियन जैक भी था। इसके कल्पनाकार थे द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर और 1917 में कोलकाता अधिवेशन में डॉक्टर एनी बेसेंट ने फहराया था। जैसे ही होम रूल पार्टी की राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति हुई पार्टी इतिहास बनी ध्वज भी इतिहास बन गया। (1917 का ध्वज चित्र)
चर्खा ध्वज 1921
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का दो दिवसीय विशेष अधिवेशन 31 मार्च और 1 अप्रैल 1921 में बेजवाड़ा जो अब विजयवाड़ा बन गया है, वहां हो रहा था तब वहां पर गांधी जी के मन में एक विचार आया कि भारत के लिए एक झंडे का निर्माण किया जाना चाहिए उन्होंने पिंगला वेंकैया जो मछलीपट्टनम का रहने वाला था और ध्वज निर्माण में एक्सपर्ट था उसे बुलाया और कहा कि एक ध्वज बना कर लेकर आओ क्योंकि उस समय ध्वज सांप्रदायिक रंगों को मिलाकर बनाए जाते थे तो करीब 1 घंटे में पिंगले वैंकेया लाल और हरे रंग के कपड़े को जोड़कर एक ध्वज का नमूना लेकर आ गया। इसी 1 घंटे में महात्मा गांधी याद आया कि उन्होंने यंग इंडिया पत्रिका में एक लेख झंडे को लेकर लिखा था जिसके अनुसार उन्होंने लिखा था कि “इस भारत भूमि पर हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई यहूदी पारसी विभिन्न जाति धर्मो के लोग रहते हैं तो ध्वज ऐसा हो जो सभी को अपना सा लगे और उसके लिए वह जान तक दे सके।”
पिंगले वैंकेया जो झंडा बनाकर लाया था वह इस भावनाओं को पूरा नहीं कर रहा था लिहाजा महात्मा गांधी ने अन्य धर्म के प्रतिनिधि स्वरूप रंग सफेद जुड़वा दिया। हम जो देखते हैं उसमें चरखा बना हुआ है यह चरखा महात्मा गांधी जी ने नहीं लगवाया था बल्कि उस समय उनके पास जालंधर के लाला हंसराज रायजादा मौजूद थे तो उन्होंने कहा कि “बापू हर देश के झंडे में प्रतीक चिन्ह लगे रहते हैं, भारत में चरखा आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया है तो क्यों ना चरखे को झंडे में स्थान दिया जाए।” जिसे गांधी जी ने स्वीकार किया और इस तरह से गांधी ध्वज,चरखा ध्वज या स्वराज ध्वज इसे नाम मिला। इसमें हम देखते हैं सबसे ऊपर सफेद रंग की पट्टी है बीच में हरे रंग कीऔर सबसे नीचे लाल रंग की पट्ट। इन तीनों रंगों के बीच में गांधी का चरखा नीले रंग से अंकित है। बाद में यह ध्वज अहमदाबाद में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन (28 दिसंबर 1921 से 1 जनवरी 1922 तक हुआ था) में फहराया गया था।
इसके रंगों के क्रम को देखें तो हमारी हिंदू संस्कृति की सोच झलकती है हमारे धर्म में कहा गया है कि “सबल को निर्बल का बोझ उठाना चाहिए।” रंगों का क्रम विभिन्न धर्मो के लिए यही अर्थ लिए हुए है। (चरखा ध्वज का चित्र)
ध्वज कमिटी का प्रस्तावित ध्वज 1931
2 अप्रैल 1931 को ध्वज कमेटी द्वारा एक ध्वज का प्रारूप प्रस्तुत किया गया जो केसरिया रंग का था और जिसके कोने पर नीले रंग से चरखा अंकित था क्योंकि यह भारत में रहने वाले सभी धर्म के लिए मान्य नहीं होता इसलिए प्रस्ताव स्तर पर ही इसे अस्वीकृत कर दिया गया मगर इतिहास में यह अपनी उपस्थिति दर्ज कर गया। (केसरिया ध्वज का चित्र)
कांग्रेस पार्टी का ध्वज 1931
5 और 6 अगस्त 1931 को कराची में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें पिंगले वेंकैया ने कांग्रेस पार्टी के लिए पार्टी ध्वज का निर्माण किया। यह ध्वज आयताकार था तथा इसकी लंबाई और चौड़ाई का अनुपात दो अनुपात तीन था। सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी मध्य में सफेद रंग की पट्टी और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी, सफेद रंग की पट्टी पर नीले रंग से गांधी का चरखा अंकित था यह कांग्रेस पार्टी का पार्टी ध्वज बना। (कांग्रेस का पार्टी ध्वज का चित्र)
दिसंबर 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ जिसके अध्यक्ष थे डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद। इसमें विभिन्न कमेटी बनाई गई जिसमें एक उप कमेटी ध्वज की भी थी। जिसके अध्यक्ष थे पंडित जवाहरलाल नेहरू, जिन्होंने सभी पार्टी के लोगों के साथ मिलकर एक लंबी डिबेट बाद निर्णय लिया गया। (जो रिकार्ड में उपलब्ध है।)
स्वतंत्र भारत का राष्ट्रध्वज का पारित प्रस्ताव
निर्णय लिया कि आजाद भारत का राष्ट्रीय ध्वज आयताकार होगा, जिसकी लंबाई और चौड़ाई दो अनुपात तीन होगी इसमें तीन सामान रंग की पट्टियां होंगी। सबसे ऊपर केसरिया रंग मध्य में सफेद रंग और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होगी। सफेद रंग की पट्टी पर मध्य में अशोक का चक्र 24 सलाकाओं वाला नीले रंग से अंकित होगा और उसका व्यास सफेद रंग की पट्टी की चौड़ाई के बराबर होगा दूर से यह चक्र केसरिया और हरे रंग को छूता हुआ प्रतीत हो यह चक्र ध्वज के दोनों तरफ से दिखना चाहिए। यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुआ।
स्वतंत्र भारत का राष्ट्रध्वज 1947
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा के समक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पारित प्रस्ताव को सभी के सामने रखा और वहां पर उन्होंने ध्वज के दो नमूने एक खादी का और दूसरा खादी सिल्क का दिखाया, इस तरह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का यह जन्म पल था। (राष्ट्रध्वज का चित्र)
सूचना प्रसारण विभाग दिल्ली का पोस्टर
राष्ट्रध्वज के मानक
मित्रों हमें मानक राष्ट्रध्वज ही खरीदना चाहिए और फहराना चाहिए मानक राष्ट्रध्वज क्या होता है यह आपको मैं बता रहा हूं राष्ट्रध्वज के कपड़े के निर्माण की विशिष्ट विधि है, राष्ट्रध्वज खादी से, खादी सिल्क से वह ऊन से भी बनाया जा सकता है मगर एक विशिष्ट शर्त इसमें जुड़ी हुई है जिसके अनुसार राष्ट्रध्वज का धागा या सूत हाथ से काता जाएगा और कपड़ा भी हाथ से बुना जाएगा। 205 ग्राम खादी से एक वर्ग फीट खादी कपड़े का निर्माण होगा। इस विधि से कर्नाटक के जिला धरवाड़ के गर्ग नामक गांव में ध्वज के कपड़े का निर्माण किया जाता है।
हुबली में बैंगेरी स्थित कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संयुक्त संघ(KKGSS) एकमात्र संस्था है यहां सिर्फ सात आकर के तिरंगे झंडे ही बनाए जाते हैं इनमें सबसे छोटा है 6 बाय 4 इंच का और सबसे बड़ा 21 बाय 14 फीट का है।
इस संस्थान की स्थापना 1 नवंबर 1957 को हुई थी। इस संघ के संस्थापक सदस्य श्री एच.ए.पै,अनंत भट्ट, बी.जी. गोखले, वासुदेव राव तथा जयदेवराव कुलकर्णी थे। 1951 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद इंडियन स्टैंडर्ड इंस्टिट्यूट (ISI) ने पहली बार आधिकारिक रूप से ध्वज की रूपरेखा तय की थी। इस संस्था कापहला उत्पाद राष्ट्रध्वज था।
इसे नंबर दिया गया ISI 1-1951 इसमें बाद में 1964 और 17 अगस्त 1968 को संशोधन किया गया अर्थात दशमलव पद्धति को लागू किया गया। वर्तमान में ध्वज की डिजाइन और निर्माण प्रक्रिया को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड(BIS)द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है।
राष्ट्रध्वज के धागा व कपड़ा बनाने की अलग यूनिट है जो निम्न अनुसार है–
1. कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ(केकेजीएसएस) की बागलकोट यूनिट में हाई क्वालिटी के कच्चे कॉटन से धागा बनाया जाता है।
2. गाडनकेरी, बेल्लारू व तुलसीगिरी में कपड़ा तैयार होता है फिर हुबली यूनिट में बाकी की प्रक्रिया संपन्न होती है।
3. जींस से भी ज्यादा मजबूत होता है ध्वज का कपड़ा।
4. कपड़ा तैयार होने के बाद इसे केसरिया और हरे रंग में रंगने के लिए मुंबई भेजा जाता है वहां से जब वापस आता है तो इसे हाथ से काते हुए सूत/धागे से ही सिलाई होती है। आईएसआई द्वारा परीक्षण किया जाता है और उसके बाद इस पर आईएसआई अपना प्रमाण पत्र प्रिंट करता है। जिसमें ध्वज की साइज़ आदि लिखी होती है आपको बताएं की शासकीय बिल्डिंगों के ऊपर इसी आईएसआई मार्क वाले ही ध्वज फहराने का नियम है।
चूंकि इनका उत्पादन कम होता है इसलिए आम लोगों के लिए यह छूट है कि वह हैंडलूम या हथकरघा जो खादी से कपड़ा बना कर राष्ट्रध्वज बनाते हैं हम उन्हें खरीद कर अपने प्रतिष्ठानों और घरों पर लगा सकते हैं। हमें वर्ष 2023 में पॉलिएस्टर के ध्वजों को भी फहराने के लिए छूट दी गई है प्लास्टिक के ध्वजों को प्रतिबंधित किया गया है।
भारतीय ध्वज संहिता (फ्लेग कोड आफ इंडिया 2022 के अनुसार राष्ट्रध्वज मानक राष्ट्रध्वज 9 प्रकार के हैं –
1. इसमें सबसे छोटा 6 बाय 4 इंच का है, जो मीटिंग व कॉन्फ्रेंस आदि में टेबल फ्लैग के रूप में इस्तेमाल होता है
2. वीआईपी की कारों में 9 बाय 6 इंच के ध्वज जो दोहरी परत के होते हैं लगाये जाते हैं।
3. राष्ट्रपति के,वीआईपी एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए 18 बाय 12 इंच के दोहरी परत वाले ध्वज होते हैं।
4. कमरों में क्रास बार के रूप में या अपने मकान/संस्थान पर लगाने वाले झंडे 3 बाय 2 फुट के होते हैं।
5. बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग पर लगने वाले झंडे साडे 5.5 बाय 3 फुट के होते हैं।
6. शहीद सैनिकों के शवों,विशिष्ट व्यक्तियों के ,शवों और छोटे सरकारी भवनों के लिए 6 बाय 4 फुट के ध्वज अधिकृत है।
7.संसद भवन और मीडियम साइज के सरकारी भवनों पर 9 बाय 6 फुट की ध्वजा लगते हैं।
8. गन कैरिएज, लाल किला, राष्ट्रपति भवन के लिए 12 बाय 8 फुट का ध्वज अधिकृत है।
9. सबसे बड़ा तिरंगा 21 बाय 14 फुट का होता है जो बहुत बड़ी बिल्डिंग पर लगाया जाता है। आपको बताऊं 26 जनवरी 2010 तक इस साइज का ध्वज कहीं भी फहराया नहीं गया था कारण तब इतने बड़े ध्वज दंड नहीं होते थे।
भारत के इतिहास में पहली बार तिरंगा अभियान इंदौर, रवि अतरोलिया और अपना समूह प्रकाश राठौर ने 26 जनवरी 2010 को इंदौर में गांधी प्रतिमा के पास ध्वजारोहण कराकर इतिहास रचा है।
अब 15 अगस्त व 26 जनवरी को शहर के मध्य गांधी प्रतिमा के भारी जन समूह की उपस्थिति में ध्वजारोहण होता है और देश पर प्राण न्योछावर करने वाले शहीद के सम्मान में उसके परिजनों का सम्मान किया जाता है।
24 घंटे फहराए जाने वाले ध्वज
जिस तरह विदेशों में वहां के राष्ट्रध्वज 24 घंटे फहराए जाते हैं, वैसा ही सपना नविन जिंदल ने देखा और जब वो कांग्रेस सरकार 2012 में सांसद के तौर पर नविन जिंदल ने गृह मंत्रालय से एक परिपत्र जारी (गेजेट नोटिफिकेशन) करवाया, जिसके अनुसार भारत में भी राष्ट्रध्वज तिरंगा 24 घंटे फहराए जाने की व्यवस्था बताई गईI
जिसके अनुसार फ्लेग कोड ऑफ़ इंडिया में दर्शित 9 प्रकार के मानक राष्ट्रध्वजों को छोड़कर बड़े और बहुत बड़े राष्ट्रध्वजों को 24 घंटे फहराया जा सकता है लेकिन शर्त यह राखी गई कि सूर्यास्त के समय मानक राष्ट्रध्वजों को उतारा (रिट्रीट) ससम्मान उतारा जाता है, ताकि राष्ट्रध्वज अँधेरे में न फहराता रहे, इसी प्रकार बड़े और बहुत बड़े राष्ट्रध्वज जिन्हें 24 घंटे फहराया जाना है, वो भी सूर्यास्त के बाद अँधेरे में न रहें, इसीलिए सूर्यास्त के बाद पर्याप्त रौशनी से रोशन रखा जाए, तथा एक स्टैंड बाय सिस्टम भी रौशनी के लिए रखा जाए, जो बिजली कटौती के समय भी ध्वज की रौशनी आबाद रहेI
इस प्रकार के बड़े और बहुत बड़े राष्ट्रध्वजों को बड़े संस्थानों, चौराहों, एअरपोर्ट और रेलवे स्टेशन पर देखे जा रहे हैंI
पॉलिस्टर के राष्ट्रध्वज
15 अगस्त 2022 को अमृत महोत्सव के वर्ष में तत्कालीन माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हर घर तिरंगा अभियान के तहत पॉलिस्टर के ध्वजों को भी मान्यता देते हुए फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया में शामिल किया गया, इस प्रकार राष्ट्रध्वज खादी, खादी सिल्क, ऊंन व पॉलिस्टर से भी बनाए जा सकते हैंI
हर घर तिरंगा अभियान के तहत आजादी के अमृत महोत्सव में 10 दिन तक 24 घंटे घरों एवं प्रतिष्ठानों पर राष्ट्रध्वज फहराने का निर्देश जारी किया गया, जो फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया के नियमों के तहत 9 प्रकार के मानक राष्ट्रध्वजों को छोड़कर 12 बाय 18 इंच के ध्वज को फहराने को मान्यता दी गईI
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राष्ट्रध्वज का विभिन्न स्थानों और अवसरों पर सम्मानजनक प्रदर्शन
1 – भवनों पर तिरंगा
भारत में एक भवन पर एक ही राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराने का नियम है लेकिन भारत में दो स्थान ऐसे हैं जहां पर एट से अनेक राष्ट्रध्वज लगाये जाते हैं।
अ.एक साथ चार राष्ट्रध्वज फहराए जाते हैं वह है हमारा पुराना सांसद भवन(पूर्व का सेंट्रल हाल) जिसकी चारों दिशाओं में पहले यूनियन जैक लगा करता था अब तिरंगा लगता है ब. दूसरा भवन है नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक जहां से भारत की सत्ता का संचालन होता है। उन भवनों की वह दीवार जो इंडिया गेट की तरफ है उसकी दीवारों पर पहले दो-दो यूनियन जैक लगते थे अब वहां दो-दो तिरंगे लगते हैं ।
2.-विशिष्ट व्यक्ति के कक्ष में दीवार पर तिरंगा
यहां पर केसरिया रंग की पट्टी आसमान की तरफ होगी और हरे रंग की पट्टी नीचे तरफ होगी।
3.-मंच पर बैकड्रॉप पर तिरंगा
यदि मंच पर बैकड्रॉप में तिरंगा लगाना है तो नियम यह कि केसरिया रंग की पट्टी आसमान की तरफ और हरे रंग की पट्टी नीचे तरफ होगी लेकिन ध्यान रहे कि हरे रंग की पट्टी वक्त के कंधे से नीचे नहीं हो।
- वक्ता या अन्य ध्वजों के साथ तिरंगा
भारत भूमि पर मंच पर या जहां भी राष्ट्रध्वज का प्रदर्शन होगा तब राष्ट्रध्वज हमेशा दाहिनी ओर होगा और ध्वज के दाहिने ओर कोई नहीं होगा। वक्ता के और अन्य झंडों के साथ यही नियम लागू होगा अर्थात राष्ट्रध्वज दाहिनी और होगा फिर उसके बायीं ओर वक्ता या अन्य राष्ट्रीय ध्वज होंगे। यह नियम भारत भूमि पर जहां भी राष्ट्रध्वज का प्रदर्शन होगा लागू होंगे।
अब हम दर्शक दीर्घा में बैठकर देखेंगे तो चाहे हम मंच पर देख रहे हों,टीवी पर,फिल्मों में,अखबारों में या सोशल मीडिया में वहां हमें हमारा राष्ट्रध्वज हमारे बायीं ओर दिख रहा है तो मंच पर राष्ट्रध्वज सही लगा है।
- विशिष्ट व्यक्ति के कक्ष मे
विशिष्ट व्यक्ति जहां वह बैठा है उसके दाहिनी और चलित ध्वज होता है जो सहजता से आगे पीछे खिसकाया जा सकता है। रखा जायेगा।
- टेबल ध्वज
विशिष्ट व्यक्ति या आप और हम अपने टेबल राष्ट्रध्वज रखना चाहते हैं। जिसे हम टेबल ध्वज कहते हैं जो 6 × 40 इंच का रेशम से निर्मित होता है,रख सकते हैं लेकिन नियम वही है कि जहां हम बैठे हैं हमारे दाहिने हाथ की ओर ही तिरंगा रखा जाएगा।
- मंच पर क्रॉस स्थिति में ध्वज
राजनीतिक आयोजनों में मंच पर राष्ट्रध्वज को दूसरे ध्वज के साथ क्रॉस स्थिति में रखा जाना है तब राष्ट्रध्वज दाहिने ओर होगा और दूसरा ध्वज बायीं ओर होगा।
- सभाकक्ष में दीवार पर क्रॉस स्थिति
सभाकक्ष में दीवार पर राष्ट्रध्वज को अन्य ध्वज के साथ लगाया जाना है तो वही स्थिति होगी,राष्ट्रध्वज दाहिनी तरफ होगा और अन्य ध्वज बायीं ओर होगा।
- भवन के ऊपर अनेक ध्वजों के साथ तिरंगा
किसी भवन के ऊपर राष्ट्रध्वज तिरंगा के साथ अन्य राष्ट्रों के ध्वज या अन्य ध्वज लगाए जाना है तो नियम यह है कि राष्ट्रध्वज तिरंगा दाहिने और होगा और बाकी सभी ध्वज बांयीं ओर होंगे।
- भवन के ऊपर संयुक्त राष्ट्र संघ के ध्वज के साथ तिरंगा
इसमें नियम यह है कि राष्ट्रध्वज तिरंगा दाहिनी ओर होगा और संयुक्त राष्ट्र संघ का झंडा उसके बाद बायीं ओर। यह नियम भारत भूमि पर ही लागू हो रहे हैं ध्यान रहे।
- दो भवनों के मध्य तिरंगा प्रदर्शन
भारत में सड़क के दोनों तरफ बने भवनों पर बीच में राष्ट्रध्वज फहराना है तो सड़क के दोनों भवनों के बीच में राषट्रध्वज को लगाया जाना है तो वनवे वाली रोड में जहां से लोग जा रहे हैं वहां पर ध्वज इस तरह से लगाया जाएगा की केशरिया रंग की पट्टी व्यक्ति के दाहिने कंधे तरफ दिखे।
- सेरिमोनियल परेड / पासिंग आउट परेड में तिरंगा
परेड में जब तीनों तीन के कूच कालम में परेड मंच के सामने से मुख्य अतिथि को अभिवादन करते हुए गुजरती है तब परेड तीन के कालम में होती है तो उसके मध्य गाइड के आगे वाला कैडेट राष्ट्रध्वज तिरंगा लेकर चलता है। जैसे ही परेड मंच के सामने से गुजरती है तब अन्य ध्वज मुख्य अतिथि के सम्मान झुकाते निकलते और कैडेट दाहिने देखते हैं लेकिन तिरंगा कभी भी किसी के सामने कभी भी झुकाया नहीं जाएगा।
- खेल कूद प्रतियोगिता में मार्च पास्ट तिरंगा
इसी प्रकार जब खेलकूद प्रतियोगितायें होती हैं तो मंच के सामने सबसे पहले तिरंगा होगा फिर उसके बांयीं ओर अन्य टीमों के ध्वज एक लाइन में होंगे जो मंच के सामने से एक साथ गुजरने पर राष्ट्रध्वज के अलावा अन्य सभी टीमों के ध्वज मुख्य अतिथि के सम्मान में झुकाते हुए गुजरेंगे लेकिन ध्वज नहीं झुकेगा।
- विभिन्न देशों के विशिष्ट व्यक्तियों के मीटिंग भवन में एवं बाहर तिरंगा
जब कहीं भारत में विभिन्न देशों के विशिष्ट व्यक्ति किसी भवन में मीटिंग करते हैं तब उस भवन के सामने एक लाइन में उन विभिन्न देशों के झंडे भी लगाये जाते हैं। तब नियम यह है कि राष्ट्रध्वज तिरंगा सबसे पहले और बहुत ऊंचे ध्वजदंड पर लगाया जायेगा फिर उसके बांयीं ओर अन्य राष्ट्रों के ध्वज होंगे। ध्यान देने वाली बात यह होगी कि बाकी ध्वजों के ध्वजदंड तिरंगा के ध्वजदंड से नीचे होंगे और तिरंगा के ठीक बाजू वाले ध्वज के बीच दूरी ज्यादा होगी।
- मल्टी स्टोरी में ध्वज प्रदर्शन
मल्टी स्टोरी में रहने वाले नागरिक अपने फ्लैट के सड़क तरफ वाली गैलरी में 65-70 डिग्री पर राष्ट्रध्वज फहरा सकते हैं और राजकीय या राष्ट्रीय शोक पर उसी एंगल पर ध्वज को ध्वजदंड की आधी ऊंचाई पर फहरायेंगे।
- शहीदों की शव पेटी व विशिष्ट व्यक्तिओं के शव पर तिरंगा
सीमा पर शहीद हुए जवानों को सम्मान देने के लिए उनकी शवपेटी पर तिरंगा उढ़ाया जाता है तो नियम यही है कि ध्वज की केसरिया रंग की पट्टी सिरहाने तरफ सफेद रंग की पट्टी चक्र सहित पेट पर और हरे रंग की पट्टी जंघाओं तरफ होना चाहिए। इसी प्रकार विशिष्ट जन (जिन्हें पात्रता है)के शव पर सम्मान स्वरूप तिरंगा लपेटा जाता है। यहां भी वही नियम है केसरिया रंग की पट्टी सिरहाने,सफेद रंग की पट्टी पेट पर व हरे रंग की पट्टी जंघाओं तरफ होना चाहिए।
- हमें ध्यान देना चाहिए
अब हम देखते हैं कि जब भी शहीदों के शवों पर तिरंगा लगाया जाता है या विशिष्ट जन की मृत्यु पर उनके शव पर जब तिरंगा लगाया जाता है तो उसमें काफी कुछ गलतियां होती है अर्थात सफेद रंग की पट्टी चक्र सहित सर से लेकर पैर तक और केसरिया व हरे रंग की पट्टी दाएं बाएं लटका दी जाती है जो गलत है आप देखे इन चित्रों से स्पष्ट हो जाएगा कि यह नियम से विपरीत है।
इस तरह से ध्वज को जब शवों पर त्रुटि पूर्ण ढ़ंग से लगाया जाता है तो शाहिद का या विशिष्ट व्यक्ति का सम्मान नहीं होता अपितु ध्वज का जरूर अपमान हो जाता है। इन गलतियों को आप सोशल मीडिया पर जब भी देखें तो फ्लैग कोड इंडिया के इस प्रावधान के बारे में बताते हुए अपनी प्रतिक्रिया जरूर डालें चुप ना बैठें।
- शवों से ध्वज हटाने का विधान
जो राष्ट्रध्वज शहीद के शव से या विशिष्ट व्यक्ति के शव से दफनाने या अग्नि दाह से पूर्व शव से हटा लिये जाते हैं। यह ध्वज शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के परिजनों को स्मृति चिन्ह स्वरूप रखने के लिए उन्हें सौंपा जाने लगा है।
जो राष्ट्रध्वज हवा और बारिश में कट जाते हैं फट जाते हैं बदरंग हो जाते हैं या फहराने योग्य नहीं रह जाते तब ऐसे ध्वजों का विधि संगत नष्टीकरण की विधि फ्लैग कोड इंडिया 2002 में दी गई है,जिसके अनुसार ऐसे ध्वजों को गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ अग्नि प्रवेश दिला देंगे या ऐसे ध्वजों में वजन या रेत बांधकर जल समाधि दे देंगे इस तरह से विधि संगत नष्टीकरण हो जाएगा।
नोट :- वर्तमान में अब शवों से उतारे गए राष्ट्रध्वज को नष्टीकरण प्रक्रिया अपनाने की वजाय शहीद या विशिष्ट व्यक्ति के परिजनों को वह राष्ट्रध्वज स्मृति चिन्ह के रूप में प्रदाय किया जाने लगा हैI
- विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रध्वज की स्थिति
कल्पना कीजिए –
अ. 14 अगस्त या 25 जनवरी को किसी अंतरराष्ट्रीय शख्सियत या भारत के विशिष्ट व्यक्ति का निधन हो जाये तो अगले दिन होने वाले राष्ट्रीय पर्व पर क्या होगा? इस संबंध में फ्लेग कोड आफ इंडिया 2002 में नियम है कि राष्ट्रीय शोक तो घोषित होगा और जिस भवन में उस विशिष्ट व्यक्ति का शव रखा है सिर्फ उसी भवन का राष्ट्रध्वज आधे ध्वजदंड पर अर्थात झुका दिया जायेगा तथा जैसे ही शव अंत्येष्टि या दफनाने को भवन से बाहर निकाला जायेगा तो उस भवन पर झुके ध्वज को भी पूरा फहरा दिया जायेगा। बाकी सारे भारत में राष्ट्रीय पर्व उसी जोश हर्षोल्लास से मनाया जायेगा।
ब. अब जो मिलेट्री फोर्स, पैरा मिलेट्री फोर्स के ट्रेनिंग सेंटरों पर जो डायरेक्ट भरती के कोर्स चलते और जिनकी पासिंग आउट परेड होती है। उन प्रशिक्षण संस्थाओं में महीनों पूर्व से तैयारी व परेड की रिहर्सल शुरू हो जाती है। ऐसे प्रशिक्षणार्थियों के जीवन में यह दिन महत्वपूर्ण होता है, एक प्रकार से उनका उस पद पर जन्म हो रहा है। पासिंग आउट परेड के कुछ दिन पूर्व विशिष्ट व्यक्ति का निधन हो जाता है और शोक अवधि के बीच ही पासिंग आउट परेड की तारीख हो तो ऐसी परेड टाला नहीं जाना हो तो पासिंग आउट परेड यथावत होगी बस थोड़ा सा फर्क रहेगा। मंच के साथ लगे राष्ट्रध्वज और जवानों या अधिकारियों को शपथ दिलाने जाने वाली टोली में जो राष्ट्रध्वज होगा उसके ध्वजदंड वाले तरफ ध्वज पर काले रंग की रिबन लटका देंगे। पासिंग आउट परेड संपन्न हो सकती है।
- राष्ट्रीय पर्व की तिथियां
हमें 365 दिन सम्मान पूर्वक ध्वजारोहण का अधिकार प्राप्त हो चुका है लेकिन अभी भी हम अपने घरों पर प्रतिष्ठानों पर 365 दिन तिरंगा का ध्वजारोहण करने में संकोच करते हैं कारण के सुबह यानि रिवोली पर ध्वजारोहण उल्हास के साथ तेजी से कर दिया और शाम को रिट्रीट होती है अर्थात ध्वज उतारने की कार्रवाई, वह चूक गए या कोई गलती हो गई तो कोई भी रिपोर्ट करके राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 के तहत अपराध दर्ज कर सकता है इस डर से भी हम 365 दिन ध्वज फहराने से कतराते हैं मगर कुछ राष्ट्रीय तिथियां भी हमें सुझाई गई हैं उन तिथियां पर हमें अपने घरों पर प्रतिष्ठानों पर सम्मान के साथ ध्वजारोहण करना चाहिए-
- गणतंत्र दिवस पर 26 जनवरी से 29 जनवरी तक कार्यक्रम संपन्न होता है इन तरीखों पर भी हमें ध्वजारोहण करना चाहिए।
- “राष्ट्रीय सप्ताह” जलियांवाला बाग के शहीदों की शहादत की स्मृति में यह राष्ट्रीय सप्ताह 6 अप्रैल से 13 अप्रैल तक मनाया जाता है। उन हुतात्माओं की याद में भी हमें राष्ट्रध्वज तिरंगा अपने घरों पर प्रतिष्ठानों पर फहराना चाहिए।
- फिर आती है तारीख 15 अगस्त जो हमारा स्वतंत्रता दिवस है।
- फिर आती है तारीख 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती
- भारत सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय उल्लास का कोई दिन-
अ. भारत के किसी भी राज्य में उसके गठन की तारीख पर वहां के नागरिकों को राष्ट्रध्वज फहराना चाहिए जैसे मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ का गठन 1 नवंबर को हुआ है। इस दिन भी प्रदेश के लोगों को अपने प्रदेश के स्थापना दिवस का सम्मान करना चाहिए।
ब. भारत सरकार किसी क्षेत्र में स्थानीय समारोह के उपलक्ष में किसी विशिष्ट दिन राष्ट्रीय ध्वज प्रतिबंध रहित रूप से फहराने का अधिकार प्रदान करती है तो उसे दिन भी हमें राष्ट्रध्वज सम्मान के साथ फहराना चाहिए।
- रोचक तथ्य राष्ट्रध्वज के
21.1 14 अगस्त 1947 को रात्रि 10:30 बजे लार्ड मांउट बैटन ने आज़ाद भारत के दस्तावेज संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेंद्र प्रसाद को सौंपे जिसके अनुसार भारत रात्रि 12 बजे के बाद 00:00 बजे यानि 15 अगस्त को आज़ाद हो जायेगा।
दस्तावेज ग्रहण समारोह में कांउसिल हाऊस के सेंट्रल हाल में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व में ” वंदे मातरम् ” के गायन से कार्यक्रम शुरू हुआ। संविधान सभा के अध्यक्ष डा. राजेंद्र प्रसाद व पं. जवाहर लाल नेहरू के भाषण के बाद श्रीमती हंसा बेन मेहता ने डा. राजेंद्र प्रसाद को सिल्क का ध्वज(जो 22 जुलाई 1947 को राष्ट्रध्वज का पारित प्रस्ताव के साथ खादी व खादी सिल्क का नमूना ध्वज लाये थे।) भेंट करते हुए कहा, ” यह उचित ही है कि इस सदव में जो पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाने वाला है, वह भारत की समस्त महिलाओं की ओर से उपहार है।”
21.2. आजाद भारत में प्रथम राष्ट्रीय ध्वजारोहण
15 अगस्त 1947 को सुबह 8:30 बजे वायसराय भवन है में गये जहां माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू और अन्य को मंत्री पद की शपथ दिलाई उसके बाद 10:30 बजे सेंट्रल हॉल में खादी सिल्क का ध्वज जो 22 जुलाई 1947 को पंडित नेहरू राष्ट्रध्वज के पारित प्रस्ताव के साथ लेकर आए थे को 21 तोपों की सलामी के साथ फहराया गया।
21.3. आजाद भारत में पहला सार्वजनिक राष्ट्रीय ध्वजारोहण
15 अगस्त 1947 को तीसरे पर प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के प्रिंसेस पार्क युद्ध स्मारक जो इंडिया गेट के पास है वहां किया उस समय आसमान साफ था कि एकाएक क्षितिज पर इंद्रधनुष दिखाई देने लगा। लॉर्ड माउंटबेटन जो दूर से समारोह को देख रहे थे, अब आप कहेंगे दूर से क्यों देख रहे थे? तो वजह यह थी कि कार्यक्रम स्थल पर इतनी भीड़ थी की लॉर्ड माउंटबेटन की बग्घी कार्यक्रम स्थल तक नहीं पहुंच पा रही थी और उन्हें एक भय भी था कि अभी-अभी भारतवासी जो आजाद हुए हैं अंग्रेजों के जुल्मों को याद करके कहीं वह उसके साथ कोई बदतमीजी ना कर दे। इस कारण से भी वह दूर खड़ा रहा और उसने समारोह को देखा। इंद्रधनुष की घटना का उल्लेख ब्रिटिश साम्राज्य को 16 अगस्त 1947 को अपनी 70वीं रिपोर्ट भेजी उसमें उसने लिखा ” यह एक विचित्र घटना थी क्योंकि चमकती धूप में बिना वर्षा के इंद्रधनुष का निकलना अद्भुत बात थी। “ जन समुदाय ने कहा ” इंद्र देवता स्वतंत्र भारत के राष्ट्रध्वज को आशीर्वाद दे रहे हैं।
21.4. लाल किले पर पहली बार आजाद भारत में ध्वजारोहण किसने, किस तारीख को और कहां पर किया?
यह एक प्रश्न है इसके उत्तर में बताना चाहूंगा कि 15 अगस्त 1947 को सुबह सेंट्रल हॉल में सिल्क का राष्ट्रध्वज फहराया गया। शाम को प्रिंसेस पार्क में फहराया गया अर्थात लाल किले पर 15 अगस्त 1947 को ध्वजारोहण नहीं हुआ। अब सवाल यह है कि आजाद भारत में कब हुआ था लाल किले पर। उत्तर इस तरह से है की ” 16 अगस्त 1947 को सुबह 8:30 बजे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर वही खादी सिल्क का ध्वज फहराया। ”
लाल किला ही क्यों चुना गया क्योंकि सुभाष चंद्र बोस का सपना था कि आजाद भारत का राष्ट्रध्वज लाल किला से फहराया जाए कारण कि लाल किला तब भी सत्ता का प्रतीक था और आज भी सत्ता का प्रतीक बना हुआ है। इस बात का उल्लेख पंडित नेहरू ने अपने प्रथम उद्बोधन में वहां से किया था।
21.5. आजाद भारत में राष्ट्रध्वज के नौ मानक
आकारों में से पहले सबसे बड़ा 21 X 14 फीट का विशाल ध्वज 2009 तक फहराया नहीं गया था कारण तब तक इतने ऊंचे हायमास्ट या पोल नहीं होते थे। यह विशाल ध्वज सबसे पहले इंदौर में तिरंगा अभियान के रवि अतरोलिया व अपना समूह के प्रकाश राठौर के द्वारा 26 जनवरी 2009 को तत्कालीन वित्त मंत्री श्री राघव जी के द्वारा फहराकर इसकी शुरुआत की गई। जो प्रतिवर्ष 26 जनवरी और 15 अगस्त को इंदौर शहर के मध्य रीगल चौराहा गांधी प्रतिमा पर सतत फहराया जा रहा है। शहर के मध्य का यह स्थान तत्कालीन कलेक्टर राकेश श्रीवास्तव आईएएस ने प्रदान किया और सजावट व्यवस्था में नगर निगम सहयोगी बना।
21.6 आजाद भारत में इंदौर रियासत होलकारों का विलय होने के बाद 21 दिसंबर 1947 को तिरंगा फहराया गया।
21.7 गोवा दमन दीव को पुर्तगाली सरकार से मुक्त कराके भारतीय नौसेना व थल सेना ने 16 दिसंबर 1961 को यहां तिरंगा फहराया। नेक्स्ट
21.8 लक्ष्यदीपों के समूह में मिनिकाय के लाइट हाउस पर आजादी के 9 साल तक यूनियन जैक फहराता रहा। इस भूल चुकी जानकारी मिलते ही। 2 अप्रैल 1956 को तिरंगा समारोह के साथ फहराया गया। इस समारोह में इंग्लैंड से लाइटहाउस सुपरिंटेंडेंट मिस्टर रीश आए थे तब यूनियन जैक उतार कर उन्हें सोपा गया तब उनकी आंखों से आंसू बह निकले।
21.9 आजादी की 40वीं वर्षगांठ पर वर्ष 1987 में राजधानी दिल्ली में 40000 राष्ट्रध्वज जगह-जगह फहराये गए थे और उन्हें अगस्त माह के दौरान एक सप्ताह तक रात दिन फहराया गया था।
राष्ट्रध्वज फहराने के अनुचित ढ़ंग
- एक राष्ट्र ध्वज कटा फटा,मैला- कुचेला कभी नहीं फहराया जाना चाहिए।
- किसी व्यक्ति या वस्तु के सम्मान में राष्ट्रीय ध्वज कभी नहीं झुकना चाहिए।
- राष्ट्रध्वज से ऊपर कभी कोई अन्य ध्वज नहीं फहराया जाए।
- राष्ट्रध्वज के दाहिने तरफ कोई भी व्यक्ति या ध्वज नहीं रहेगा।
- राष्ट्रध्वज में फूल बांधना मना है, सिवाय विशेष आदेश व परिस्थितियों के। जीबी सिंह उपसचिव भारत सरकार के GOP के ” गृह मंत्रालय, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली- क्रमांक 15/ 13/ 95 – पब्लिक दिनांक 24 जनवरी 1997 के अनुसार वर्जित किया गया है। अतः इसका पालन हो।
- प्लास्टिक से बने झंडों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है सिर्फ कागज के छोटे झंडों का प्रयोग किया जाए क्योंकि प्लास्टिक झंडा आसानी से नष्ट नहीं होते हैं। आदेश देखें ” भारत सरकार गृह मंत्रालय, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली- क्रमांक 15/7/2006 -पब्लिक दिनांक।
7 नवंबर 2006 -एस के भटनागर उपसचिव भारत सरकार द्वारा हस्ताक्षरित - राष्ट्रध्वज को धरती पर रखना, पानी की सतह पर रखना,काटना, फाड़ना,जलाना,पैरों तले कुचलना, उसे विकृत करना, उस पर कुछ लिखना एवं राष्ट्रचिन्ह,राष्ट्रध्वज के चक्र का व्यवसायिक उपयोग करनाअपराधहोगा।
राष्ट्रध्वज तिरंगा से संबंधित कानून - 1. राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971
2. The Emblems & Names(Prevention of Improper Use) Act 1950
3. The Emblems & Names ( Prevention of Improper Use) Rules 1982
4 . The State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act 2005 5.The State Emblem of India (Regulation of Use) Act 2007 - राष्ट्रध्वज के प्रति निष्ठा की शपथ
” मैं राष्ट्रीय झंडे और लोकतंत्रात्मक, संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष गणराज्य के प्रति निष्ठा की शपथ लेत/लेती हूं, जिसका यह झंडा प्रतीक है। “