23 जनवरी- सुभाष जयंती पर विशेष

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  1. नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ था।
  2. द्वितीय विश्व युद्ध – 1943 में जापान की सेना के साथ सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौजी भी अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ी थी और गुलाम भारत के भूभाग अंडमान निकोबार को मुक्त कराया था। जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया। जहां उन्होंने आजाद हिंद फौज से सलामी ली,चरखा ध्वज फहराया और उसका नामकरण “शाहीद और स्वराज द्वीप” किया। वर्ष 2018 तक शासकीय रूप से इन दीपों को यह नाम नहीं मिला था। 2015 से सतत स्कूली बच्चों से इस हेतु प्रधानमंत्री जी को पोस्टकार्ड लिखवाया गए।
    प्रधानमंत्री महोदय मोदी जी को विभिन्न संस्थाओं में ईमेल कराया तब जाकर 30 दिसंबर 2018 को माननीय नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री भारत सरकार ने खुद वहां जाकर भव्य समारोह में शहीद एवं स्वराज नाम देते हुए अन्य दीपों के भी नाम की घोषणा की, परिपत्र जारी हुआ। तिरंगा अभियान की इस सफलता पर हमने धन्यवाद ज्ञापित किया।
  3. फरवरी 8,1943 को जर्मनी से जापान तक सबमरीन में सफर के साथ में आबिद हसन और 17 अगस्त 1945 को जापानी बमबर्षक विमान से आजाद हिंद फौज के कर्नल हबीबुर रहमान के साथ निकले और 18 अगस्त 1945 की दोपहर 2:00 बजे “तोपेह” से उड़ान भरते ही विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उस अंतिम सफर में भी मुस्लिम हमसफर थे-आजाद हिंद फौज के तीन अधिकारियों का कोर्ट मार्शल हुआ था,उन में थे

अ.श्री पी के सहगल (अब मृत)

ब.शाहनवाज खां(अब मृत)
स.श्री जीएस ढिल्लों जो गुना में रहकर कृषि करने लगे थे। वर्ष 1998 में उन्हें देशभक्ति के लिए “पद्म विभूषण” से सम्मानित किया गया था।

इन लोगों पर “लाल किला ट्रायल” नमक ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया।प्रताडित किया गया मगर यह लोग टूटे नहीं। इस ऐतिहासिक मुकदमे के दौरान लोगों के बीच एक नारा गूंजा ” लाल किले से आई आवाज़ सहगल ढिल्लों शाहनवाज”,।
गुना मध्य प्रदेश में जीवन के अंतिम दिन बताते हुए 6 फरवरी 2006 को अंतत: मृत्यु को प्यारे हो गए।

  1. आजाद हिंद सरकार की स्थापना 21 अक्टूबर 1943 को जन गण मन के भावों को लेकर हिंदी अनुवाद कराया गया “शुभ-सुख-चैन की बरखा” रचा गया।सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि दी गई एवं “जय हिंद” नारे का जन्म हुआ।
  2. नेताजी ने रंगून से जनवरी 1944 में “दिल्ली चलो” का नारा दिया।
  3. सुभाष चंद्र बोस को मरणोंपरांत “22 जनवरी 1992” को राष्ट्रपति भवन में मरणोपरांत भारत रत्न दिए जाने की घोषणा कर दी लेकिन सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनीता बोस ने कतिपय कारणों से सम्मान लेने से इनकार कर दिया। चूंकि भारत रत्न वापस लेने कोई प्रावधान नहीं है इसलिए गृह मंत्रालय ने इसे अपने पास रखा हुआ है। 2014 में एक बार फिर सुभाष चंद्र बोस को भारत रत्न देने की मांग उठी लेकिन नेताजी के परिवार ने फिर से इस सम्मान को लेने से मना कर दिया।
  4. त्रिपुरा कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष के भाषण-

“सबसे पहले मैं जो महसूस कर रहा हूं वह सचस्पष्ट कर दूं कि अब समय आ गया है कि हमें स्वराज का मामला उठाना चाहिए और चुनौती के रूप में हमारी राष्ट्रीय मांग को ब्रिटिश सरकार के सामने रखा जाना चाहिए……….”

 

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