राष्ट्रध्वज तिरंगा के संबंध में जानकारी

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मैं अगर बात कर बात करूं कि अतीत के भारत का कोई एक राष्ट्रध्वज नहीं था कारण अतीत का भारत एक भूखंड का नाम था जिसमें बहुत राजे राजवाड़े  जमीदार  हुआ करते थे और उन सब के अपने-अपने राज्य चिन्ह और धर्म चिन्ह हुआ करते थे इसलिए अतीत के भारत का कोई एक राष्ट्रध्वज नहीं था।

आपको मैं ले चलता हूं 24 अगस्त सन 1600 में जब गुजरात प्रांत के सूरत नगर में कैप्टन हॉकिंस के नेतृत्व में अंग्रेजों का व्यापारी दल के रूप में उतरा। उनके हाथ में यूनियन था (यूनियन जैक ध्वस्त लगेगा)। हमने पहली बार यूनियन जैक को देखा था और यह माना कि यह व्यापारी कपड़े का झंडा लेकर आए हैं तो क्या फर्क पड़ता है मगर सच यह था कि वह अपने राष्ट्र की शक्ति को अपने ध्वज के साथ लेकर आए थे और हमें गुलाम बना लिया। तब हमें एहसास हुआ कि राष्ट्रध्वज की शक्ति क्या होती है चलिए इस तरह से हम गुलाम बने जो 200वर्षों तक रहे 1857 में जब हमें लगा कि अब हमें आजाद होना चाहिए तब हम बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में इकट्ठे हुए। भारत में तब समय 565 रियासतें थी।

सभी को कमल का फूल और रोटी भेज कर उन्हें एक गोपनीय मीटिंग के लिए आमंत्रित किया (बहादुर शाह ज़फर का ध्वज)  सब इकट्ठे हुए और सभी ने बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में क्रांति की शुरुआत करने के लिए सहमत हुए सब ने मिलकर क्रांति के लिए तारीख चुनी 31 मई 1857, इसी दिन सभी 565 रियासतें राजा रजवाड़े मिलकर एक साथ क्रांति छोड़ देंगे। युवा पीढ़ी को इंतजार बर्दाश्त नहीं होता युवा पीढ़ी का मंगल पांडे जो अंग्रेज फौजी का सिपाही था उसे 31 मई तक का इंतज़ार बर्दाश्त नहीं हुआ। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में उसने पहली बार एक क्रांति की चिंगारी की छोड़ी और इस तरह से 29 मार्च 1857 को ही यह आज़ादी प्राप्त करने की लड़ाई शुरू हो गई।

अब हम चलते हैं आगे 1857 से शुरु हुई आज़ादी की लड़ाई 1904 तक सफल नहीं हो पाई थी इसका कारण था की जो भी राजे राजवाड़े रियासतें इस लड़ाई में शामिल होती थीं जैसे ही उनका उद्देश्य पूरा होता वह आजादी के लड़ाई से हट जाती थीं तो आजादी कैसे मिलती?

यही चिंतन स्वामी विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता के मन में चल रहा था उन्होंने महसूस किया कि राजे राजवाड़े और रियासतों की जनता का समर्पण उनके अपने राज्य के ध्वज या धर्म चिन्ह के प्रति रहेगा अन्य के प्रति नहीं। सिस्टर निवेदिता ने सोचा कि गुलाम भारत का एक ध्वज होना चाहिए जिसके नीचे सभी राजे राजवाड़े रियासतों के नागरिक उसके नीचे आएं और आजादी की लड़ाई मिलकर लड़ें।

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